Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
१८९. णाहं देहो ण मणो, ण चेव वाणी ण कारणं तेसिं।
कत्ता ण ण कारयिदा, अणुमंता व कत्तीणं।।१३।।
१९०. को णाम भणिज्ज बुहो, णाउं सव्वे पराइए भावे।
मज्झमिणं ति य वयणं, जाणतो अप्पयं सुद्धं ॥१४॥
१९१. अहमिक्को खलु सुद्धो, णिम्ममओ
णाणदंसणसमग्गो। तम्हि ठिओ तच्चित्तो, सव्वे एए खयं णेमि॥१५॥
१६. मोक्षमार्गसूत्र
१९२. मग्गो मग्गफलं ति य, दुविहं जिणसासणे समक्खादं।
मग्गो खलु सम्मत्तं, मग्गफलं होइ णिव्वाणं॥१॥
१९३. दंसणणाणचरित्ताणि, मोक्खमग्गो त्ति सेविदव्वाणि।
साधूहि इदं भणिदं, तेहिं दु बंधो व मोक्खो वा॥२॥
१९४. अण्णाणादो णाणी, जदि मण्णदि सुद्धसंपओगादो।
हवदि त्ति दुक्खमोक्खं, परसमयरदो हवदि जीवो॥३॥
१९५. वदसमिदीगुत्तीओ, सीलतवं जिणवरेहि पण्णत्तं।
कुव्वंतो वि अभव्वो, अण्णाणी मिच्छदिट्ठी दु॥४॥
५०
समणसुत्त - भाग १
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119