Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ ३२१. विरई अणत्थदंडे, तच्चं, स चउन्विहो अवज्झाणो। पमायायरिय हिंसप्पयाण पावोवएसे य॥२१॥ ३२२. अद्रुण तं न बंधइ, जमणठेणं तु थोवबहुभावा । अढे कालाईया, नियामगा न उ अणट्ठाए॥२२॥ ३२३. कंदप्पं कुक्कुइयं, मोहरियं संजुयाहिगरणं च। उवभोगपरीभोगा-इरेयगयं चित्थ वज्जइ।। २३॥ ३२४. भोगाणं परिसंखा, सामाइय-अतिहिसंविभागो य। पोसहविही य सव्वो, चउरो सिक्खाउ वुत्ताओ॥२४॥ ३२५. वज्जणमणंतगुंबरि अच्चंगाणं च भोगओ माणं। कम्मयओ खरकम्मा-इयाण अवरं इमं भणियं ।। २५॥ ३२६. सावज्जजोगपरिरक्खणट्ठा, सामाइयं केवलियं पसत्थं। गिहत्थधम्मा परमं ति नच्चा, कुज्जा बुहो आयहियं परत्था॥ २६॥ ____e ८८ समणसुत्तं - भाग १ समणसुतं - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119