Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ २७७. सुद्धस्स य सामण्णं, भणियं सुद्धस्स दंसणं णाणं। सुद्धस्स य णिव्वाणं, सो च्चिय सिद्धो णमो तस्स ॥१६॥ २७८. अइसयमादसमुत्थं, विसयातीदं अणोवममणंतं। अव्वुच्छिन्नं च सुहं, सुद्धवओगप्पसिद्धाणं॥१७॥ २७९. जस्स ण विज्जदि रागो, दोसो मोहो व सव्वदव्वेसु। णाऽऽसवदि सुहं असुहं, समसुहदुक्खस्स भिक्खुस्स॥१८॥ (इ) समन्वय २८०. णिच्छय सज्झसरूवं, सराय तस्सेव साहणं घरणं। तम्हा दो वि य कमसो, पडिच्छमाणं पबुज्झेह ॥१९॥ २८१. अब्भंतरसोधीए, बाहिरसोधी वि होदि णियमेण। अम्भंतर-दोसेण हु, कुणदि णरो बाहिरे दोसे॥२०॥ २८२. मदमाणमायलोह-विवज्जियभावो दुभावसुद्धि नि। परिकहियं भव्वाणं, लोयालोयप्पदरिसीहिं॥२१॥ २८३. चत्ता पावारंभ, समुट्ठिदो वा सुहम्मि चरियम्हि। ण जहदि जदि मोहादी, ण लहदि सो अप्पगं सुद्धं ॥२२॥ २८४. जह वणिरुखं असुहं, सुहेण सुहमवि तहेव सुद्धण। तम्हा एण कमेण य, जोई झाएउ णियआदं॥२३॥ ७६ समणसुतं- भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119