Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 101
________________ ८० Jain Education International २९२. हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा । न ते विज्जा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा ।। ५॥ २९३. रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवंति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी ॥ ६ ॥ २९४. विवित्तसेज्जाऽऽसणजंतियाणं, ओमाऽसणाणं दमिइंदियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ॥ ७ ॥ २९५. जरा जाव न पीलेइ, वाही जाव न वड्ढई । जाविंदिया न हायंति, ताव धम्मं समायरे ॥ ८ ॥ २२. द्विविध धर्मसूत्र २९६. दो चेव जिणवरेहिं, जाइजरामरणविप्पमुक्केहिं । लोगम्मि पहा भणिया, सुस्समण सुसावगो वा वि ॥ १ ॥ २९७. दाणं पूया मुक्खं, सावयधम्मे ण सावया तेण विणा । झाणाज्झयणं मुक्खं, जइधम्मे तं विणा तहा सो वि ॥२॥ समणसुत्तं - भाग १ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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