Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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१८१. आरुहवि अंतरप्पा, बहिरप्पो छंडिऊण तिविहेण।
झाइज्जइ परमप्पा, उवइट्ठं जिणवरिंदेहिं॥५॥
१८२. चउगइभवसंभमणं, जाइजरामरण-रोयसोका य।
कुलजोणिजीवमग्गण-ठाणा जीवस्स णो संति ॥६॥
१८३. वण्णरसगंधफासा, थीपुंसणqसयादि-पज्जाया।
संठाणा संहणणा, सव्वे जीवस्स णो संति॥७॥
१८४. एदे सव्वे भावा, ववहारणयं पडुच्च भणिदा हु।
सव्वे सिद्धसहावा, सुद्धणया संसिदी जीवा।।८॥
१८५. अरसमरूवमगंध, अव्वत्तं चेदणागुणमसदं।
जाण अलिंगग्गहणं, जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं॥९॥
१८६. णिइंडो णिबंदो, णिम्ममो णिक्कलो णिरालंबो।
णीरागो णिद्दोसो, णिम्मूढो णिज्भयो अप्पा॥१०॥
१८७. णिग्गंथो णीरागो, णिस्सल्लो सयलदोसणिम्मुक्को।
णिक्कामो णिक्कोहो, णिम्माणो णिम्मदो अप्पा ॥११॥
१८८. णवि होदि अप्पमत्तो, ण पमत्तो जाणओ दु जो
भावो। एवं भणंति सुद्धं, णाओ जो सो उ सो चेव ॥१२॥
समणसुत्तं - भाग १
४८
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