Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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१७४. नाणमेगग्गचित्तो अ, ठिओ अ ठावयई परं । आणि अ अहिज्जित्ता, रओ सुअसमाहिए ॥ ५ ॥
१७५. वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवं ।
पियंकरे पियंवाई, से सिक्ख लधुमरिहई ।। ६ ।।
१७६. जह दीवा दीवसयं, पइप्पए सो य दिप्पए दीवो । दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेंति ॥ ७ ॥
१५. आत्मसूत्र
१७७. उत्तमगुणाण धामं, सव्वदव्वाण उत्तमं दव्वं । तच्चाण परं तच्चं, जीवं जाणेह णिच्छयदो ।। १ ॥
१७८. जीवा हवंति तिविहा, बहिरप्पा तह य अंतरप्पा य । परमप्पा वि य दुविहा, अरहंता तह य सिद्धा य ॥ २ ॥
१७९. अक्खाणि बहिरप्पा, अंतरप्पा हु अप्पसंकप्पो ।
कम्मकलंक - विमुक्को, परमप्पा भण्णए देवो ।। ३ ।।
१८०. ससरीरा अरहंता, केवलणाणेण मुणिय-सयलत्था । णाणसरीरा सिद्धा, सव्वुत्तम- सुक्ख - संपत्ता ॥ ४ ॥
समणसुत्त - भाग १
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