Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ ४६ Jain Education International १७४. नाणमेगग्गचित्तो अ, ठिओ अ ठावयई परं । आणि अ अहिज्जित्ता, रओ सुअसमाहिए ॥ ५ ॥ १७५. वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियंवाई, से सिक्ख लधुमरिहई ।। ६ ।। १७६. जह दीवा दीवसयं, पइप्पए सो य दिप्पए दीवो । दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेंति ॥ ७ ॥ १५. आत्मसूत्र १७७. उत्तमगुणाण धामं, सव्वदव्वाण उत्तमं दव्वं । तच्चाण परं तच्चं, जीवं जाणेह णिच्छयदो ।। १ ॥ १७८. जीवा हवंति तिविहा, बहिरप्पा तह य अंतरप्पा य । परमप्पा वि य दुविहा, अरहंता तह य सिद्धा य ॥ २ ॥ १७९. अक्खाणि बहिरप्पा, अंतरप्पा हु अप्पसंकप्पो । कम्मकलंक - विमुक्को, परमप्पा भण्णए देवो ।। ३ ।। १८०. ससरीरा अरहंता, केवलणाणेण मुणिय-सयलत्था । णाणसरीरा सिद्धा, सव्वुत्तम- सुक्ख - संपत्ता ॥ ४ ॥ समणसुत्त - भाग १ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119