Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 91
________________ ७० २५५. जो अप्पाणं जाणदि, असुइ- सरीरादु तच्चदो भिन्नं । जाणग- रूव- सरूवं, सो सत्थं जाणदे सव्वं ॥ ११ ॥ Jain Education International २५६. सुद्धं तु वियाणंतो, सुद्धं चेवप्पयं लहइ जीवो । जाणतो दु असुद्धं, असुद्धमेवप्पयं लहइ ॥ १२ ॥ २५७. जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ । जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ ।। १३ ।। २५८. जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ । जे सव्वं जाणइ, से एगं जाणइ ॥ १४ ॥ २५९. एदम्हि रदो णिच्चं, संतुट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि । एदेण होहि तित्तो, होहिदि तुह उत्तमं सोक्खं ।। १५ ।। २६०. जो जाणदि अरहंतं, दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं । सो जाणादि अप्पाणं, मोहो खलु जादि तस्स लयं ।। १६ ।। (अ) व्यवहारचारित्र २६१. लद्धूणं णिहिं एक्को, तस्स फलं अणुहवेइ सुजणत्ते । तह णाणी णाणणिहिं, भुंजेइ चइत्तु परतत्तिं ॥ १७ ॥ २०. सम्यक्चारित्रसूत्र २६२. ववहारणयचरित्ते, ववहारणयस्स होदि तवचरणं । णिच्छयणयचारित्ते, तवचरणं होदि णिच्छयदो ॥। १॥ समणसुत्तं - भाग १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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