Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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२४६. णाणाऽऽणत्तीए पुणो, दंसणतवनियमसंजमे ठिच्चा।
विहरइ विसुज्झमाणो, जावज्जीवं पि निक्कंपो॥२॥
२४७. जह जह सुयमोगाहड़, अइसयरसपसरसंजुयमपुव्वं ।
तह तह पल्हाइ मुणी, नवनवसंवेगसद्धाओ॥३॥
२४८. सूई जहा ससुत्ता, न नस्सई कयवरम्मि पडिआ वि।
जीवो वि तह ससुत्तो, न नस्सइ गओ वि संसारे॥४॥
२४९. सम्मत्तरयणभट्ठा, जाणंता बहुविहाई सत्थाई।
आराहणाविरहिया, भमंति तत्थेव तत्थेव॥५॥
२५०-२५१. परमाणुमित्तयं पि हु, रायादीणं तु विज्जदे जस्स।
ण वि सो जाणदि अप्पाणयं तु सव्वागमधरो वि॥६॥ अप्पाणमयाणंतो, अणप्पयं चावि सो अयाणंतो। कह होदि सम्मदिट्ठी, जीवाजीवे अयाणंतो॥७॥
२५२. जेण तच्चं विबुज्झेज्ज, जेण चित्तं णिरुज्झदि।
जेण अत्ता विसुज्झेज्ज, तं जाणं जिणसासणे॥८॥
२५३. जेण रागा विरज्जेज्ज, जेण सेएसु रज्जदि।
जेण मित्ती पभावेज्ज, तं णाणं जिणसासणे॥९॥
२५४. जो पस्सदि अप्पाणं, अबद्धपुढें अणन्नमविसेसं।
अपदेससुत्तमज्झं, पस्सदि जिणसासणं सव्वं ॥१०॥
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समणसुत्त - भाग १
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