Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 81
________________ २२१. जं मोणं तं सम्मं, जं सम्मं तमिह होइ मोणं ति। निच्छयओ इयरस्स उ, सम्मं सम्मत्तहेऊ वि॥३॥ २२२. सम्मत्तविरहिया णं, सुठु वि उग्गं तवं चरंता णं। ण लहंति वोहिलाहं, अवि वाससहस्सकोडीहिं॥४॥ २२३. दंसणभट्ठा भट्ठा, दंसणभट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं। सिज्झंति चरियभट्ठा, दंसणभट्ठा ण सिज्झंति॥५॥ २२४. दंसणसुद्धो सुद्धो दंसणसुद्धो लहेइ णिव्वाणं। दंसणविहीण पुरिसो, न लहइ तं इच्छियं लाहं ।।६।। २२५. सम्मत्तस्स य लंभो, तेलोकस्स य हवेज्ज जो लंभो। सम्मइंसणलंभो, वरं खु तेलोक्कलंभादो॥७॥ २२६. किंबहुणा भणिएणं, जे सिद्धा णरवरा गए काले। सिज्झिहिंति जे वि भविया, तं जाणइ सम्ममाहप्पं ॥८॥ २२७. जह सलिलेण ण लिप्पड़, कमलिणिपत्तं सहावपयडीए। तह भावेण ण लिप्पड़, कसायविसएहिं सप्पुरिसो॥९॥ ६० समणसुत्तं - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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