Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 77
________________ १७. रत्नत्रयसूत्र (अ) व्यवहार-रत्नत्रय २०८. धम्मादीसद्दहणं, सम्मत्तं णाणमंगपुव्वगदं। चिट्ठा तवंसि चरिया, ववहारो मोक्खमग्गो त्ति॥१॥ २०९. नाणेण जाणई भावे, दंसणेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई॥२॥ २१०. नाणं चरित्तहीणं, लिंगग्गहणं च दंसणविहीणं। संजमहीणं च तवं, जो चरइ निरत्थयं तस्स॥३॥ २११. नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा। अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं॥४॥ २१२. हयं नाणं कियाहीणं, हया अण्णाणओ किया। पासंतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो य अंधओ॥५॥ २१३. संजोअसिद्धीइ फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ। अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा॥६॥ ५६ समणसुत्त - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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