Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ १७. जहा लाहो तह लोहो, लाहा लोहो पवइढई। दोमासकयं कज्जं, कोडीए वि न निट्ठियं ।।१६।। १८. सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया। नरस्स लुद्धस्स न तेहि किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणन्तिया॥१७॥ ९९. जहा य अंडप्पभवा बलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा य। एमेव मोहाययणं खु तण्हा, मोहं च तण्हाययणं वयंति॥१८॥ १००. समसंतोसजलेणं, जो धोवदि तिव्व-लोहमल-पुंजं। भोयण-गिद्धि-विहीणो, तस्स सउच्चं हवे विमलं॥१९॥ १०१. वय-समिदि-कसायाणं, दंडाणं तह इंदियाण पंचण्हं। धारण-पालण-णिग्गह-चाय-जओ संजमो भणिओ॥२०॥ १०२. विसयकसाय-विणिग्गहभावं, काऊण झाणसज्झाए। जो भावइ अप्पाणं, तस्स तवं होदि णियमेण ॥२१॥ १०३. णिव्वेदतियं भावइ, मोहं चइऊण सव्वदव्वेसु। जो तस्सं हवे चागो, इदि भणिदं जिणवरिंदेहिं॥ २२॥ १०४. जे य कंते पिए भोए, लद्धे विपिठिकुव्वड़। साहीणे चयइ भोए, से हु चाइ त्ति वुच्चई ।। २३ ।। १०५. होऊण य णिस्संगो, णियभावं णिग्गहित्तु सुहदुहदं। णिदंदेण दु वट्टदि, अणयारो तस्साऽऽकिंचण्णं ।। २४ ।। समणसुत्त - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119