Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 55
________________ ३४ Jain Education International १२३. अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठिय सुप्पट्ठिओ ॥ २ ॥ १२४. एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इन्दियाणि य । ते जिणित्तु जहानायं, विहरामि अहं मुणी ! ॥ ३ ॥ १२५. जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ॥ ४ ॥ १२६. अप्पाणमेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ । अप्पाणमेव अप्पाणं, जइत्ता सुहमेहए ॥ ५ ॥ १२७. अप्पा चेव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुद्दमो। अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सिं लोए परत्थ य ॥ ६ ॥ १२८. वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य । माऽहं परेहिं दम्मंतो, बंधणेहिं वहेहि य ॥ ७ ॥ १२९. एगओ विरइं कुज्जा, असंजमे नियत्तिं च, एगओ य पवत्तणं । संजमे य पवत्तणं ॥ ८ ॥ १३०. रागे दोसे य दो पावे, पावकम्म पवत्तणे 1 जे भिक्खू भई निच्चं, से न अच्छड़ मंडले ॥ ९ ॥ १३१. नाणेण य झाणेण य, तवोबलेण य बला निरुभंति । इंदियविसयकसाया, धरिया तुरगा व रज्जूहिं ॥ १० ॥ समणसुतं - भाग १ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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