Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ १०६. अहमिक्को खलु सुद्धो, दंसणणाणमइओ सदाऽरूवी। ण वि अस्थि मज्झ किंचि वि, अण्णं परमाणुमित्तं पि॥२५॥ १०७-१०८. सुहं वसामो जीवामो, जेसिं णो नत्थि किंचण। मिहिलाए डज्झमाणीए, न मे डज्झइ किंचण ।। २६ ।। चत्तपुत्तकलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो। पियं न विज्जई किंचि, अप्पियं पि न विज्जए।। २७ ।। १०९. जहा पोम्मं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलितं कामेहिं, तं वयं बूम माहणं॥२८॥ ११०. दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हओ जस्स न किंचणाइं॥२९॥ १११. जीवो बंभ जीवम्मि, चेव चरिया हविज्ज जा जदियो। तं जाण बंभचेरं, विमुक्कपरदेहतित्तिस्स ।। ३० ।। ११२. सव्वंग पेच्छंतो, इत्थीणं तासु मुयदि दुब्भावं। सो बम्हचेरभावं, सुक्कदि खलु दुद्धरं धरदि।। ३१॥ ११३. जउकुंभे जोइउवगूढे, आसुभितत्ते नासमुवयाइ। एवित्थियाहि अणगाग, संवासेण नासमुवयंति ।। ३२ ।। 30 समणसुत्त - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119