Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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५०. भोगामिसदोसविसन्ने, हियनिस्सेयसबुद्धिवोच्चत्थे।
बाले य मन्दिए मूढे, बज्झई मच्छिया व खेलम्मि॥६॥
५१. जाणिज्जइ चिन्तिज्जइ, जम्मजरामरणसंभवं दुक्खं।
न य विसएसु विरज्जई, अहो सुबद्धो कवडगंठी॥७॥
५२-५
, जो खलु संसारत्थो, जीवो तत्तो दु होदि परिणामो। परिणामादो कम्म, कम्मादो होदि गदिसु गदी॥८॥ गदिमधिगदस्स देहो, देहादो इंदियाणि जायते। तेहिं दु विसयग्गहणं, तत्तो रागो वा दोसो वा॥९॥ जायदि जीवस्सेवं, भावो संसारचक्कवालम्मि। इदि जिणवरेहिं भणिदो, अणादिणिधणो सणिधणो वा॥१०॥
५५. जम्मं दुक्खं जग दुक्खं, रोगा य मरणाणि य।
अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसन्ति जंतवो॥११॥
६. कर्मसूत्र
५६. जो जेण पगारेणं, भावो णियओ तमन्नहा जो तु।
मन्नति करेति वदति व, विप्परियासो भवे एसो॥१॥
५७. जं जं समयं जीवो आविसइ जेण जेण भावेण।
सो तंमि मि समए, सुहासुहं बंधए कम्मं ।। २ ।।
समणसुत्त - भाग १
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