Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ ८१. भावे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण। न लिप्पई भवमझे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं॥११॥ ९. धर्मसूत्र ८२. धम्मा मंगलमुक्किळं, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥१॥ ८३. धम्मो वत्थुसहावो, खमादिभावो य दसविहो धम्मो। रयणत्तयं च धम्मो, जीवाणं रक्खणं धम्मो॥२॥ ८४. उत्तमखममद्दवज्जव-सच्चसउच्चं च संजमं चेव। तवचागमकिंचण्हं, बम्ह इदि दसविहो धम्मो॥३॥ ८५. कोहेण जो ण तप्पदि, सुर-णर-तिरिएहि कीरमाणे वि। उवसग्गे वि रउद्दे, तस्स खमा णिम्मला होदि॥४॥ ८६. खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज्झं ण केण वि॥५॥ ८७. जइ किंचि पमाएणं, न सुठु भे वट्टियं मए पुविं। तं भे खामेमि अहं, निस्सल्लो निक्कसाओ अ॥६॥ ८८. कुलरूवजादिबुद्धिसु, तवसुदसीलेसु गारवं किंचि। जो णवि कुव्वदि समणो, मद्दवधम्म हवे तस्स ॥७॥ समणसुत्त - भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119