Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 41
________________ २० Jain Education International ७. मिथ्यात्वसूत्र ६७. हा ! जह मोहियमइणा, सुग्गड़मग्गं अजाणमाणेणं । भीमे भवकंतारे, सुचिरं भमियं भयकरम्मि ॥ १ ॥ ६८. मिच्छत्तं वेदंतो जीवो, विवरीयदंसणो होइ । धम्मं रोचेदि हु, महुरं पि रसं जहा जरिदो ॥ २ ॥ ६९. मिच्छत्तपरिणदप्पा, तिव्वकसाएण सुठु आविट्ठो । जीवं देहं एक्कं, मण्णंतो होदि बहिरप्पा ॥ ३ ॥ ७०. जो जहवायं न कुणई, मिच्छादिट्ठी तओ हु को अन्ना । वड्ढइ य मिच्छत्तं, परस्स संकं जणेमाणो ॥ ४ ॥ ८. राग - परिहारसूत्र ७१. रागो य दोसो वि य कम्मवीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयंति ॥ १ ॥ समणसुत्त भाग १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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