Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ २७. १० २८. २९. ३०-३१ ३२. ३३. ३४. Jain Education International आसासो वीसासो, सीयघरसमो य होइ मा भाहि । अम्मापितिसमाणो, संघो सरणं तु सव्वेसिं ॥ ३ ॥ नाणस्स होइ भागी, थिरयरओ दंसणे चरिते य । धन्ना गुरुकुलवासं, आवकहाए न मुंचंति ॥ ४ ॥ जस्स गुरुम्मिन भत्ती, न य बहुमाणो न गउखं न भयं । न वि लज्जा न वि नेहो, गुरुकुलवासेण किं तस्स ? ॥ ५ ॥ कम्मरयजलोहविणिग्गयस्स, सुयरयणदीहनालस्स । पंचमहव्वयथिरकण्णियस्स, गुणकेसरालस्स ॥ ६ ॥ सावगजणमहुयरपरिवुडस्स, जिणसूरतेयबुद्धस्स । संघपउमस्स भर्छ, समणगणसहस्सपत्तस्स ।। ७ ।। ४. निरूपणसूत्र जो पमाणणयेहिं, णिक्खेवेणं णिरिक्खदे अत्थं । तस्साजुत्तं जुत्तं, जुत्तमजुत्तं च पडिहादि ॥ १ ॥ गाणं होदि पमाणं, णओ वि णादुस्स हिदयभावत्थो । णिक्खेओ वि उवाओ, जुत्तीए अत्थपडिगहणं ॥ २ ॥ णिच्छयववहारणया, मूलभेया णयाण सव्वाणं । णिच्छयसाहणहेउं, पज्जयदव्वत्थियं मुणह ॥ ३ ॥ समणसुत्त भाग १ - For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119