Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
२१.
जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेण। अमला असंकिलिट्ठा, ते होंति परित्तसंसारी॥५॥
२२.
जय वीयराय! जयगुरु! होउ मम तुह पभावओ भयवं! भवणिव्वेओ मग्गाणुसारिया इट्ठफलसिद्धी॥६॥
२३.
ससमय-परसमयविऊ, गंभीरो दित्तिमं सिवो सोमो। गुणसयकलिओ जुत्तो, पवयणसारं परिकहेउं॥७॥
२४.
जं इच्छसि अप्पणतो, जं च ण इच्छसि अप्पणतो। तं इच्छ परस्स वि या, एत्तियगं जिणसासणं॥८॥
२५.
३. संघसूत्र संघो गुणसंघाओ, संघो य विमोचओ य कम्माणं। दसणणाणचरित्ते, संघायंतो हवे संघो॥१॥
२६.
रयणत्तयमेव गणं, गच्छं गमणस्स मोक्खमग्गस्स। संघो गुणसंघादा, समयो खलु णिम्मलो अप्पा॥२॥
समणसुत्त - भाग १
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119