Book Title: Saman suttam Part 1
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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१३ उसहमजियं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे॥१३॥
१४.
सुविाहे च पुप्फयंतं, सीयल सेयंसं वासुपुज्जं च। विमलमणंत-भयवं, धम्म संतिं च वंदामि।।१४।।
१५.
कुंथु च जिणवरिदं, अरं च मल्लिं च सुव्वयं च णमि। वंदामि रिट्ठणेमि, तह पासं वड्ढमाणं च ॥१५॥
१६. चंदेहि णिम्मलयरा, आइच्चेहिं अहियं पयासंता।
सायरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥१६॥
२. जिनशासनसूत्र
जपल्लीणा जीवा, तरंति संसारसायरमणंतं। तं सव्वजीवसरणं, गंददु जिणसासणं सुरं॥१॥
जिणवयणमोसहमिणं, विसयसुह-विरेयणं अमिदमयं। जरमरणवाहिहरणं, खयकरणं सव्वदुक्खाणं ।।२।।
अरहंतभासियत्थं, गणहरदेवेहिं गंथिरां सम्म। पणमामि भत्तिजुत्तो, सुदणाणमहोदहिं सिरसा।।३।।
तस्स मुहुग्गदवयणं, पुव्वावरदोसविरहियं सुद्धं । आगममिदि परिकहियं, तेण दु कहिया हवंति तच्चत्था ॥४॥
समणसुत्त - भाग १
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