Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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साधु
अर्थ
क कर्मोनां बंधने तजतोयको हुं मारां पांचे महाटतोर्नु रक्षण करुं छु. एवोरोते आठ प्रकारनां मदस्यानोने, तया आठ प्रकाप्रतिव रना छानावरणीय आदिक कर्मोने, अने ते कर्मोनां बंधने (परिवज्जंतो के०) परिवज्जतो, एटले साग करतोयको हुँ मारा
पांये महावृतोनी रक्षा करुं हुं. वली हुं केवो ढुं? तो के, (गुत्तो के०) गुप्तः, एटले मनगुप्ति, ते मनने गुप्त करीने रा॥१७॥
ख. अर्यात् मनने जे गोपवq ते मनगुप्ति कहेवाय. तया वचनगुप्ति एटले वचनने अर्थात् जापाने गोपवीने जे वचनो बोलवां, तेने वचनगुप्ति कहेवाय. तथा कायगुप्ति एटले कायाने वश राखीने जे गोपववी. तेने कायगुप्ति कहेवाय. एवी रीतनी त्रणे प्र. कारनी गुप्तियें करीने युक्त ययेलो एवो हूं. (पंचमहत्वए के) पंचमहावृतान् एटले पांचे महावृतोने, अर्थत् प्राणातिपातविरमण नामना पहेला महारतने, तया मृषावादविरमण नामना बीजा महातने, तथा अदत्तादानविरमण नामना वीजाममहावृतने, तथा मैथुनविरमण नामना चोया महावृतने, अने परिग्रहविरमण नामना पांचमा महावृतने, अर्थात् ते उपर कहेलां पांचे महावृतोने ( ररकामि के० ) रहामि एटले हुं रहा करूं छु. अर्थात् ए पांचे महावृत्तोने हुं सम्यकप्रकारे पाळु छु. ॥ अठपवयणमाया । दिछा अठविहनिछिअठहिं । नवसंपन्नो जुत्तो । ररकामि महत्वए पंच ॥ २॥
अर्थः-(अविहनिष्ठियडेहि के0) अष्टविधनिष्ठि ताथैः, एटले आठ प्रकारे दय पाम्या डे झानावरणी आदिक पदार्थो जेमना, एवा श्री जिनेश्वर प्रभुनए (दिन के) दृष्टाः, एटले उपलब्ध करेली, अर्यात् केवलदर्शनयी जोएली, एवी (अकृपययणमाया के0) अष्टप्रवचनमातृः, एटले आठ प्रवचनमाता अर्थात् र्यामुमति, जापासुमति, एपाणा सुमति, पारि ठावणीया सुमति, अने आदानमनिखेपणा सुमति, ए पांचे मुमति, तया मनगुप्ति, वचनगुप्ति अने कायगुप्ति, एत्रण गुप्तिमलीने, आठ प्रवचन माता कहेवाय. रे. एवीरीतनीआठे प्रकारनी प्रवचन माताबमे करीने (नवसंपन्नो के0) नवसंपनः एटले प्राप्त थयोयको हुँ मारां पांचे महावृतोरक्षण करु झु. वली हुं केवो छु? तो के, (जुत्तो के०) युक्तः एटले एटले ते पूर्वोक्त अष्टप्रवचनभातानबमे करीने युक्त थ योयको (पंचमहवए के ) पंच महावृतान् एटले पांचे मह णातिपातविरमण नामना पहेला महावृतने, तया मृषावादविरमण नामना वीजा महावृतने, तथा अदत्तादानविरमण नामना त्रीजा महावृतने, तथा मैथुन विरमण नामना चोथा महावृतने, अने परिग्रह विरमण नामना पांचमा महावृतने, एवी रीतनां उपर वर्णवेलां पांचे महावृतोनी (रकामि के०) रक्षामि, एटले हूं रक्षा करुं हुं. अर्थात् ते पांचे महावृतोनी हूं सम्यकप्रकारे
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