Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 350
________________ ति मअनेक अर्थ:---जेणे आत्माने नथी जाएयो तेनेज आ जगत्मां आनंद अने विजान रहेने, परंतु जो पोताने पिन पोताना आलानी खबर दे, तेने आत्मा शिवाय क्या आनंद प्रने क्या विश्वास ! ॥ ६१ ॥ अर्थ: विवेचन-आ जगत् एटले धन, धान्य, बोकरां, कुटुंब विगरे. हवे तेने इव्य, केत्र, काल, अने जावथी अनुक्रमे जरा जअने तमारा आत्माने ऽव्य, क्षेत्र, काल लावयो जुन के क्या विश्वास अने क्यां आनंद ले? एक नदाहरण तरीके जाइए तो पुत्रप्राप्ति वखो वाजां वगमाव) मुख माननारने तेनाज परण वखने दुःख यायढे. तेज वखते प्रयमना सुख करतां पण दुख वधारे जणाशे, तो जेमां सुखनो विश्वास राख्यो हतो, तेज दगो दीघो. एम माणमो बात कहे ले, परंतु पोताना आत्मामां विश्वास राख्यो होत, अने तेने कर्मयी बोमवी, सुख आपवा यांड्यु होत तो केबुवीक थान, कारणाके अनेक जन्म घया, तो पण तमे जुन तो खरा के ताने डोमीने तमाशे आत्मा क्यां गया? तमारी सायनो सायेज ले परंतु तमे तेनी अवगणना करो, तेमा कं विश्वासज न राखो, एतो जाणे घरमां को बेज नहीं, कांइ लेखानोज नदि एम करो तोपण ते एवं। ल के ते तमने बोमो जतो नथी, माटे तेमा विश्वास राखो, तो ते तमने चावशे. जेने मुख मुख कर रहा हो, ते विपाके :ख ने परंतु आ तो तमने दुःखमांयी मुक्त करी आनंदमंदिरमा लइ जशे. तेम वीजी संपारी वस्तुने आत्मा माये चारे रोते तपासतां सहज मा. लम पमशे, के विश्वासस्थान अने आनंदस्यान तो आत्माज ने. ॥ सारे अंतरात्माए आहारादि पण शुं न करवा ।। । स्वबोधादपरं किंचिन्न स्वांते बिनृयात्कणम् । कुर्यात्कार्यवशात्किंचिहाकायान्यामनावृतः ॥ ६ ॥ ___ अर्थ:-चित्तयां आत्मझान शिवाय अर्थात् शुक्ष चैतन्यमा रमाता शिवाय घी कांड पाण कार्य का वार पण न कर अने कदाच आहार, विहार उपदेशादि कोई कार्य करवां पके, तो ते करवां, पण मनथ जाणे लेपाया विना वाणीने कायायी करवां. ॥ ६॥ || विवेचन-काया वाणीने प्रभुपूजामा प्रवृत्त करवानी देव पाड्यापली एक वखते पूजा करतां मनः प्रभुना ज्ञानादि गु. णोने जोनां अने तेनेज पोताना शुरू चैतन्य साये मरखावतां देवटे दाणवार अनेद अनुनय थयो. यासपात न नेलां वीना || Join Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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