Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 358
________________ %3 भनि - 13NDI - - ।। पृथग्दृष्ट्वाऽऽन्मनः कायं कायदात्मानमात्मचित । तथा त्यज्यत्यसंगोंऽगं यथा वस्त्रं घृणास्पदम् ॥ १॥ अर्थः-आत्मज्ञानी आत्माधी कायाने जेम दी जाने. नेम कायायी आत्मा पण जदोज माने ने माटेमा पाने होय, सारे अंगन एवीने नोमीले के जाणे विष्टायो म्यमाएल बस होयनी ॥ १ ॥ ॥कोण पोताना मरूपयी पानो पम्ता नयी ने कहे दे.॥ अंतदृष्ट्वात्मनस्तत्वं बहिर्दृष्ट्वा ततस्तनुम् । नन्नयोर्तेदनिष्णातो न खलेदात्मनिश्चये ॥ २ ॥ अर्थ:-जे देद अने आस्मानी जद जापावामां निपुग ने, ने पानाना अंतरमा पात्मतत्वने अन दादिर शरीरने जए ने आवी निपुण जेददृष्टियी ने पीनाना अात्मस्वरूषयी काइ दिको पाठो पम्ती नयी. ।। ७२ ॥ आत्मज्ञानीन आग्नमां अने पढ़ी जगत् केवु लागे न ? तर्कयेज्जगन्मत्तं प्रागुत्पन्नात्मनिश्चयः । पश्चाल्लोप्टमिवाचेष्टं तदुश्टाच्यासवासितः ॥ ॥ अर्थ:-जने आत्मनिश्चय याय दे, तेने प्रथम आ जगत् नन्मत्त जेवु लाग ते परंतु तेज जगत आत्मदर्शननी दृढ वामना यया पठी, माटीनां देकां जे लामे ले. ॥ ३ ॥ ॥ आत्मा, शरीरथी जिन्न न मात्र बोलवा के सांजळवायी मोह नयी.॥ ॥ शरीरात्रिनमात्मनं गृण्वन्नपि वदन्नपि । तावन्न मुच्यते यावन्न नेदान्यासनिष्ठितः ॥३॥ अर्थः-या शरीरादियी आत्मा जुदो ते. एQ मात्र बोलवायो के मानल्यायो न बंधनयो मुकाइ मोदर पामती नयी. प insan रंतु ज्यारे वेदशानना अच्यामयी आत्मानो निश्चय गाय ठे. खारेज मोद पाम ते. ॥५॥ मात्मनावना तेणे कवी करवी! ।। Sain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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