Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 348
________________ सायु मूत्र নিত अर्थ: वाक्कायान्यां पृथकृत्वा मनसात्मानमन्यसेत् । वाक्तनुन्यां प्रकुर्वीत कार्यमन्यन्न चेतसा ॥ ६ ॥ अर्थ:-वाणी ने कायायी आत्माने छूटो करी फक्त मन यो आत्मा ध्यान करवू, अने तेज मनवमे वाणीनां अने शरीरनां को पण कामो न करवां.' ॥६॥ आ श्लोकरन आत्मा अत्यासीने वारादरी ( बाराखमी ) रूप ले. माटे प्रिय वांचनार, जो तने आत्पानी खबर न होय तो, आ श्लोकन वारंवार वांच अथवा सांजळ, आना अर्थन वारंवार मनन एटले चिंतन करी मनयां खूब बेसाम, अने सार परी, मन केम वश कर तेनो एक उपाय नाचे प्रमाणे कर. अनुक्रम एवो डे के, काया, वाणी अने मन. जे को अशुनमा प्रवर्तता होय, तेने शुनमा प्रवर्तायां एटले एवी देव काया, वाणी अने मनने पड्या पली, मन प्रसन्न थशे, अने ते प्रसन्न थयु के मनवमे काया अने वाणीयी आत्माने छुटो करवो. पजी तेज प्रसन्न मनवमे अ.त्माने पोताना घरमां खोळवो. आम ज्यारे बीजा सर्व विचार बोमी दइ केवल पोताना शुभ चैतन्यनोज ते अभ्यास करशे, तो कणवार ज्यारे मन स्थिर थशे के तेने आत्मलान यशे. परंतु मनने ने शुनमांधी का नयी, तेने आ अच्यास व्यर्य ले. परंतु जो शुनमा प्रवर्तावg होय तो काया, वाणी अने मनन। पवित्रता करवो. अने ए पवित्र थवाना अनेक मार्गमा एक मार्ग आने के मैत्री, करुणा, प्रमोद अन मध्यस्य ए चार नावनानना खूब अत्यास कर वो. जेम वारव्रतधारी हमेशा नियम लइ सकेपेले, तेम तेने सांजसवार मकल जंतु पर समान नावरूप मैत्री, ते दिवसे रही के न रही, पोतायी व्ये के विद्याए हिन होय तेना नपर करुणा रही या नहीं, पोतायी व्य वा विद्या धारे होय, तेने जो पोताने आनंद थयो या नहीं, अने असंत अनाचार सेवनार नपर प प नहीं आवतां पाने मध्यस्य यश रहो या न. हीं. आम रोज अत्यास करतां अधर्म जइ धर्म, अशुज जश्शुलमा एटले सामायक, प्रतिक्रमण पूजा, झानास्याम गिरे म वृत्ति करवाने मन सत्वर तैयार थशे. अने शुजक्रियामां गया पनी मनने स्थिर यतां वार नथी. कारण के विशेपे की मन dan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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