Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 352
________________ साधु प्रति ॥३ ॥ जती रहे अने आत्मा पोताना स्वरूपमा स्थिति पामे. ॥६५॥ ॥हवे विषयोमा एवं का नथी के जे आत्याने हितकारक होय.॥ विषयेषु न तत्किश्चित्स्याक्तिं यचरीरिणाम् । तथाप्येष्वेव कुर्वन्ति प्रीतिमझानयोगिनः ॥ ६६ ॥ अर्थः-विषयोमा एयु कंई नयी के जे आत्माने हितकारक होय ते बतां अज्ञानी तेमांज प्रीति करी रह्यो बे. ॥६६॥ ॥मूहने आ बात कहेवी व्यर्थ बे एम बतायेत. ॥ अनाख्यातमिवाख्यातमपि न प्रतिपद्यते । आत्मानं जमधीस्तेन वैध्यस्तत्र ममोद्यमः॥६॥ अर्थ:-जेनी बुधिज जस थ गले, तेवाने आत्मस्वरूप कहेवाथी ते जाणतो नथी, तेमज न कहेवाथी पण तेने मुके एम नथी, माटे एवा जम्बुझिने खातरी कराववाने महेनत करूं तो एमां मारी महेनतज वांझणी रहे. ॥ ६ ॥ ॥ वली तेज विशेपे करी कहे जे.॥ तन्नाहं यन्मया किंचित्प्रज्ञापयितुमिष्यते । योऽहं न स परग्राह्यस्तन्मुधा वोधनोद्यमः ॥ ६॥ अर्थः–जे कइ मने जणावधानी इन्चा थर ले, ते हुं नयी, कारण के जे हुं हुं, ते वीजायी ग्राह्य नयी; पट जामाटे हवे मारे बोध करवानी मेहेनतज व्रया बे. ॥ ६ ॥ विवेचन-आत्मस्वरूप विकल्पोमां आवे नहि, कारण के विकल्पो मनवम थायले अन मन न ते जम. माटे स्वपरनुं विवेचन खूब करतांकरतां ज्यारे मन स्थिर यह जरा अलग रो के स्वरूपनो प्रति नाम पातानेज थाय ने. एटला पादशात्रकारो वारंवार कहे ले के ए स्वसंवेद्य एटले पोताथीज जणाय एवो बे.-ना. क. ॥ वल। तेज वात विस्तारपूर्वक कहे .॥ निरुज्योतिरझोऽतः स्वतोऽन्यत्रैव तुष्यति । तुष्यत्यात्मनि विज्ञानी बहिर्विगतविज्रमः ॥ ६॥ ४ ॥ Jalt Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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