Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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साधु
प्रति
||३१॥
गणना.
॥ (महाजक्तयः) एटले मोटी मे नक्ति से अपनी एवा. एज कारण माटे, गंजुलिय के० ( रोमाश्चिमा, देशीशब्दत्वात् ) विकः ॥ स्वर थईने, रोमराज ते जेमनी एवा. सुरवर के० (सुरवराः) एटले चोसठ इंच जेते, हस्लुप्फलिय के (वरिताः, देशीशब्दत्वात् ) एटले उतावला यया सता, एटले पोतानां मोटां मोटां विषय सुखनो साग करोने, भुवणेवि के० (भुवनेपि) एटले आ लोकने विषे पण, महसव के० ( महोत्सवान ) जन्मादि कल्याणक महोत्सवोने, पवत्तयंति के० (प्रवर्तयन्ति ) एटले प्रवर्ना डे. इंशदिक मोटामोटा देवतान, सुघोषानामे देवताना संकेतने जणावना घंटाना शब्दने सांजली, मोटा मोटां वि. षय मुखने तत्काल मुकी, महा मोटी जक्तियो, जेनां कल्याणकादि महोत्सवने करवा सावधान याय बे एवा तमो बो. ए वीरीतनो नाव जाणवो.
श्य के0 (इतिहेतोः) एटले ए हेतु माटे तिहुअणआणंदचंद के० (हे विजुवनानन्दचन्!) एटले हे त्रण जगतने आनंद करवाने च समान ! एवा, तया मुहुन्नव के० (हे सुखोनच !) एटले हे मुखनी खाण ! एवा. एटले जेम रजनी खाणमांथी रन नीकले ले, तेम तमो पण मुखनी खाण बो. माटे सुखनी श्वावालाने तो तमोज प्रार्थना करवा योग्य बो, ए जाव जाणवो. पास के० (हे पार्थ!) हे पार्श्वनाथपनो ! जप के तमो जयवंता वतॊ. ॥ १५ ॥
॥ निम्मल केवल-किरण-नियर-विदुरिय-तम-पहयर ।
दंसिय-सयल-पयच-स विवरिय-पहायर ॥ कलि-कलुसिय-जण-घूय-लोय-लोयणह-अगोयर ।
तिमिर निरु दर पास-नाद नुवणत्तय दिणयर ॥ १३ ॥ अर्थः-निम्मल के0 (निर्मल ) एटले कर्मरूप मलव रहित एवं, केबल के केवलझान एज, किरणनियर के० (किर
॥३१॥ णनिकर ) एटले कांतिनो समूह तेणे करीने, विहुरिय के (विधुरित ) एटले नाश कर्यो , तमपहयर के0 ( तमःप्रकर, देशीशब्दत्वात् ) अज्ञानरूम अंधकारनो समूह ते जेणे, तेना संबोधनने विषे, हे निम्मलकेवल किरणनियरविहरियतमपदयर
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