Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 345
________________ अर्थ: साधु | विवेचन,-आत्मा जे नाना प्रकारना विकल्पो करे . ते सघला मनवमेयाय ने. परंतु ज्यारे ते विकल्पो नामी दीए, !! प्रतिः || एटले मन पण लुलुं यह ननुं रमेजे. आम विकल्पो छुव्यापली पोते, तेज पोते, शांत, निष्क्रिय, आनंदमय प्रतिज्ञासेने. जा.क. !! ॥ हवे कोण तत्चने जुए ने अने कोण नथी जोतो ते कहे . ॥ ॥३३॥ अज्ञानविप्लुतं चेतः स्वतत्त्वादपवर्तते । विज्ञानवासितं तहि पश्यत्यंतःपुरे प्रनुम् ॥ ५० ॥ अर्थः-अनादि काळयी अज्ञानमां मुंफाइ गएलुं चित्त आत्मतत्वथी पार्छ हठे ले. परंतु तेज चित्त शानवासनायी घटटमंदिरमा रहेला मनुने जुए . ॥ ५० ॥ ॥ कदाच पूर्वना मोहना उदययी राग देववके मन हणाय तो, शुं करवू ते कहे . ॥ मुनेर्यदि मनो मोहाशगाद्यैरनिनूयते । तन्नियोज्यात्मनस्तत्त्वे तानेव दिपति क्षणात् ।। ५१ ॥ अर्थः-कदाच मुनिनुं मन मोहने लीधे रागदेपवझे पराजव पामे, तो तेने आत्मतत्व साथे जोमवं. एटले ते रागपिने तेज कणे गमी देशे. ॥१॥ विवेचन-आ युक्ति बहुज नत्तम ; कारणके आ युक्तियी मोहराज, तेना प्रधान रागप, तेना मुलटो काम, क्रोधादि ए सर्वनो परानव यऽ जाय . कारण के आत्मा परने गेमी पोताना स्वरूपमा पेठो के, प्रिय वांचनार, पहेलांज तेनुं वीर्य स्कुरे . ए वीर्यने जोतांज मोहने खपटी मूक नाम पमे पोवारा गणवा पके डे कारणके ए पोताना स्वरुपमा गयो एटले एने परवस्तुमां रस के मुळ रही नहि एटले बीचारां रांकमां मोहिनीनां कर्म आ वीर्यवानने शुकरी शके ॥ १ ॥ ॥ हवे पर वस्तुमांथी रति जवानी मार्ग देखा है.॥ ॥ यत्राऽशात्मा रतः काये तस्माद व्यावर्तितो धिया । चिदानंदमये रूप योजितः प्रोतिमु. त्सृजेत् ॥ ५॥ ४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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