Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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साधु
मुत्र
॥ हवे आत्मज्ञानी पोतानो अनुभव कहे जे. ॥ पति आत्मन्येवात्मनात्मायं स्वयमेवानुन्नूयते । अतोऽन्यत्रैव मां ज्ञातुं प्रयासः कार्यनिष्फलः॥४०॥ | अर्थः
अर्थः-आवा शन, दर्शनमय आत्मानो अनुनब तो आत्मानी अंदर आत्मा पोतेज पोतानी मेळे करी रह्यो , माटे मा..३३॥ई रे तेने बाहेर जाणवाने प्रयत्न करवो ते हवे निष्फल ले. ॥ ४० ॥
॥आत्मानो आम अनुजा यया पडी तेनीज वारंवार लावना करवायी यता फळने देखा ले.॥ स एवाहं स एवाहमित्यन्यसन्ननारतम् । वासनां दृढयन्नेव प्राप्नोत्यात्मन्यवस्थितम् ॥१॥
अर्थः-आ प्रमाणे शानदर्शनमय आत्मानो अनुजव यया पली सोहं “ सोहं " तेज हुं तेज हुँ एवो वगर खांचे अन्यास करता करतां ते शुक्ष चैतन्यमय आत्मानो एवी दृढ वासना थाय डे के जेथी ते आत्मा परमात्मानो स्थितिने पामे ले. ४१.
विवेचन-अर्थसदित प्रथम आ श्लोकोनुं श्रवण अथवा वांचन, पडी तेनुं मनन, सारपडी तेनो निदिध्यास, अर्थात् ते प्रमाणेज वर्तन करतां पोतामांज, आत्माज अनंत चतुष्टयनी कंई बाया देखातां आनंद य रहेशे. अने आ शुक्लध्यानमांज मंड्या रहेवायी परंपराए थोमाज वखतमां परमात्मस्थिति पमाशे. माटे अज्यासीए एटले आत्माना अनु नवनी हा राखनारे, श्रवण, मनन ने निदिध्यास एत्रणे अनुक्रमे साचवां जोए-जा. क.
॥ हवे अज्ञानीनी दशा वर्णवे ने.॥ स्याद्यद्यत्प्रीतयेऽज्ञस्य तत्तदेवापदास्पदम् । बिन्नेत्ययं पुनर्यस्मिंस्तदेवानंदमंदिरम् ॥ ४ ॥
अर्थः–जे जे वस्तुनमां अज्ञानीनी प्रीति याय दे, ते ते वस्तुन खरु जोतां तेने दुःख आपनारीज होय ठे, परंतु जे वस्तु थी ते बीहे , तेज वस्तु तेने आनंदना मंदिरमा दोरी जनारी ले. ॥ ४॥
Hussm हवे परमात्मानुं तत्व नळखबानो प्रयोग कही देखामे ले. ॥ सुसंवृत्नेंशियग्रामे प्रसन्ने चांतरात्मनि । कणं स्फुरति यत्नत्त्वं तद्रूपं परमेष्टिनः ॥ १३ ॥
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