Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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|| अर्थः
साधु
अलौकिकमहो वृत्तं ज्ञानिनः केन वयते । अज्ञानी बध्यते यत्र ज्ञानी तत्रैव मुच्यते ।। ३७ ॥ ॥ प्रति
अर्थः-अहो कानीना वृत्तनुं अर्थात् आचरणनू कोण वर्णन करी शके एम जे तेतो कोई अलैकिक , कारणके ज्यां अज्ञानी बंधा जाय , सांज ज्ञानी (सम्यकदृष्टि होवाथी) बंधनथी मूकाय !!?॥३॥
विवेचन-छानीने संसार, सारी रीते नच्च गति करवान हवेथा स्थान . अने अझानीने संसार लटकवारूप लागे डे. झानीने सर्व आनंदमय जणाय , अज्ञानीने सर्व दुःखमय ले. ज्ञानीने जवोजव थवा ए रमत ने, अझानीने जवोजव थर्बु ए जटकवारूप अथवा वेठरूप ले. ज्ञानी आनंदघन महाराजने, आ चौद राज लोकमां चोराशी लाख योनिमा फरवू ए चोपटनी रमत जेवू लागे बे. अने अझानीने ते केदखाना जेवू लागे बे. खेले चतुर्गति चोपर चार गतिरूप चोपट जीव खेले ले, कारण हानीनो खेल सर्वमा निर्जरारूपे होय . ___ अनुजवी आंतरदृष्टिथी पूर्ण, अने आंतरदृष्टिपूर्वक बहिरष्टियी खंम एम जोवाधीनजय अरूपी रूपी पदार्थनो आ. स्वाद लइ शके बे.
॥ हवे पोतानी पूर्वनी बाह्यदृष्टि संजारी जरा खेद कर ले. ॥ यजन्मगहने खिन्नं प्राङ्मया दुःखसंकुले । तदात्मेतरयोर्नूनमन्नेदेनावधारणात् ॥ ३० ।।
अर्थः-दुःखोयी आकुल ब्याकुल थइ रहेला आ जन्मरूपी गहन वनमा हुँ पूर्वे लटकी जटकी बहु खेद पाम्यो; कार|| ण के आत्मा अने तेथी जुदी एवी बीजी जम वस्तुननो आत्मासाये, अरे अरे अनेदपणे में निश्चय कर्यो !!॥३०॥
॥ हवे पोताने आत्मनिर्णय थया पड़ी परजीव उपर तेने केटली वधी करुणा आवे डे ते देखामे .. ॥ मयि सत्यपि विज्ञाने प्रदीपे विश्वदर्शिनि । किं निमन्जत्ययं लोको वराके जन्मकर्दमे ॥ ३५॥ ॥३३३॥ __ अर्थ:-हूं आ आखा विश्वने जोनारो ज्ञानरूपी,, ते बतां विचारो आलोकसमुदाय जन्मरूपी कादवमां केम पमी जाय !!! ॥ ३ ॥
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