Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ सा प्रतिक ___॥३२॥ - ॥ अतः प्रागेव निश्चयः सम्यगात्मा मुमुकुन्निः। अशेषपरपर्यायकल्पनाजालवर्जितः ।। ५॥ मूत्र अर्थः-एटला माटे मोदनी इच्छा राखनारानए पेहेलेज विवेकथी समीरने आत्मानो निश्चय करवो. ते सम्यक् आत्मा || प्रथः एवो ले के जेमां मनुष्य, तिर्यंच, नारकीने देवता, एका चांतिथी जागता सघळा परपर्यायनी हैयाती नयी. ॥ ४॥ ॥ हवे आत्मानु स्वरूप त्रण प्रकारे वर्णवे . ॥ ॥ त्रिप्रकारः स नूतेषु सर्वेष्वात्मा व्यवस्थितः । बहिरंतः परश्चेति विकल्पैर्वक्ष्यमाणः ॥५॥ अर्थः-सर्व प्राणीनमा व्यापी रहेलो यात्मा जुदा जुदा त्रण विकल्पोत्रमे वाहिर, आंतर अने पर एम त्रण प्रकारयी कदेवामां आवशे. ॥५॥ ॥ हवे वहिरात्मान स्वरूप कह ले. ॥ ।। आत्मबुद्धिः शरीरादौ यस्य स्यादात्मवित्रमात् । बहिरात्मा स विज्ञेयो मोदनिशस्त चेतनः ॥६॥ अर्थः-या शरीर, मन, अने वाणी विगरेमा जेने आत्मचांतिथी आत्मबुधियाय. ते मोहनिशमा पमीने घोरतो चेतन बहिरात्मा कहेवाय. ॥६॥ ॥ हवे अंतरात्मा स्वरूप कहे . ॥ बहिनीवानतिक्रम्य यस्यात्मन्यात्मनिश्चयः । सोऽतरास्मा मतस्तविनमध्वान्तनास्करैः ।। ७ ।। अर्थः-नपर कहेली शरीरादि बाहेरनी वस्तुनने बोमी जेने पोताना आत्मामाज आत्मनिष्ठा याय, ते अंतरात्मा ए॥३१ म चांतिरूप अंधकारने दूर करनार मूर्य सरखा आत्मज्ञानिए मान्यु ने. ॥9॥ १ छान, दर्शन, अने चारित्र एज सम्यक् आत्मा ने ४१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372