Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 335
________________ साधु प्रतिष् १३२७॥ विवेचन-- जे शरीर ने इंडियाना विषयो पोनायी जिन्न, जलाय एटने पोते अंतराला भयो. एम मूत्र तुजेन 11 काश मे बहिरात्मा जूदो देखाइ गयो, ते परमप्रकाशमय सूर्यवत् परमात्मा ते. माटे बहिरामा जे वेळा जूड़ो देखा जाय, ते ज वेळा अंतरात्मा तरफ पण नजर करी लेवी. एटले ज्योतिर्दर्शन अंतरात्मायां प्रतिविष देखाइ रहे ते. ॥ वो याग करवानीयुक्ति देखा दे. || अर्य दृश्यमिदं रूपं तत्तदन्यं न चान्यथा । ज्ञानवच व्यतीताकमतः केनात्र वच्यहम् ॥ २४ ॥ जावार्यः – आ जे जे कंइ देखाय ते ते माराय। जू दुं बे ने जे माराय) जू हुं वे ते सरे को बहा दे एवं न अशक्य बे. कारण के आा जे जे कइ देखाय बे ते इंडियाने गोचर वे अने हुं तो इंडियाने गोचर कुंझानवान एटले देखा एवो नयी, सारे मारायी जुदा एवा जम साथ केम बोलुं ! ॥ २४ ॥ विवेचन-लोकनी अनुज करतां, अनुजवरमिक जाषांतर कर्तने, कोइ अलौकिक शांति उत्पन्न य हती. कार के इंडिगोचर सर्व विषयमा मौन रहेवायो, वचन वर्गणाना पुद्गलो फरी फरी, समुड़यां जेम मोजां शांति पामे, तेम - तरां शांत पामतां जातां दतां वातचितत्र्यादि जेटलो व्यवहार थायडे, ते बधो जरु सायेज थायडे कारण के चैतन्य तो देखातुं नयी, बोलतुं नथी, सांजळतुं नयी. मात्र या जे सर्व क्रिया थाय छे, ते तो दीपवत् जुए वे जाणे बे. ॥ वे बाहिर विकल्प तजी आंतर विकल्पो तजवानुं बतावे . ॥ जनेरपि बोध्योऽहं यज्जनान् बोधयाम्यहम् । तत्रिमपदं यस्माददं विध्वस्तकल्पनः ॥ २५ ॥ अर्यः - मारो को बोध करी शके अथवा हुं कोइने बोध करूं के "हुं" आवो लुंए तो मात्र चांति छे, कारण के हुं निर्विकल्प होवाथी एवी कोइ कल्पनाथी ग्रहण या शकुं नहि ॥ २५ ॥ विवेचन - धारो के एक कुंरुमां जळ परिपूर्ण नरेलुठे. तेनी वचमां फुवारोडे, अने फुवाराने मयाले बिशे बे; तेमांयी जळ नमे बे. तेमज आत्मानुं अनंत शक्तिरूपी जल मनरूप फुवारामां थइ इंडियोरूप बिड्यांथी निकली बहार आवतुं जगाय d. एयीज आत्मानी बहार यावेली शक्तिनने, बहिरात्मा पोतानी मानी रहेलो बे; अने कुंरुमां नरेलुं अनंतशक्तिरूपी जळ Jain Education International For Personal & Private Use Only ॥३१७ www.jainelibrary.org

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