Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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साधु
प्रतिव
115461
दन मेदन, वेदन बहुविध पाई || क्षेत्रवेदना यदि दईने, वेद नेद दरसाई ॥ सं ॥ ० २६ ॥ पुद्गलरांगें नरकबेदना, बारती वेदी ॥ पुण्यसंयोगे नरजव लाभो, अथुन युगलगति जेदी || सं० ॥ २१ ॥ अति दुर्लज देवनकुं नरजव, श्रीजिनदेव वखाणे || श्रवण मृणी ते वचन सुधारस, त्रास केम नंवि आणे ॥ सं० ॥ २८ ॥ विषयासक्त राग पुद्गलको, घरि नर जन्म ग यावे || कांग जमावणकाज वित्र जेम, मारमणि पछतावे || सं० ॥ २०९ ॥ दश दृष्टांते दोहिलो नरजव, जिनवर व्यागम जायो | पण तिकुं किम खबर के जिरा, कनक वीज रस चाख्यो ॥ स्रं ॥ ३० ॥ हारत या अनोपम नरजव, खेल विषय रस जूमा || पीछें पछतावत मनमांहि, जिन निमलका सूया ॥ सं ॥ ३१ ॥ कोइक नर इम वचन सुणीने, धर्मयकी चित्त लावे ॥ पण जे पुद्गल आनंदी तस, स्वर्ग तथा सुख जावे || सं० ॥ ३२ ॥ संजम के फल शिव संपत, अल्पमति नवि जाणे ॥ विन जाणे नियाणां करीने, गज तज रासन आणे ॥ सं० ॥ ३३ ॥ पौलिक सुख रस रसिया नर, देवनिधि सुख देखे ॥ पुचहीन थयां दुर्गति पामे, ते लेखां नवि लेखे || सं० ॥ ३४ ॥ देवतगणां मुख वार छानंती. जीव जगत् में पाया ॥ निज सुख विपुल सुखतो, मन संतोष न आया ॥ सं० ॥ ३५ ॥ पुलिक मुख सेवत प्रहनिश, मन इंडिय धावे ॥ जिम घृत आहूति देतां निशांत नवि थावे ॥ सं० ॥ ३६ ॥ जिम जिम अधिक विषयसुख सेवे, तिम तिम तृष्णा दीपे || जिम पेयजल पान कीयाथी, तृपा कहो किम बीपे ॥ सं० ॥ ३७ ॥ पुद्गलीक सुखना यात्रादी, एह मरण नवि जाणे ॥ जिम जा संघ पुरुष दिनकरनुं, तेज नवि पहिचाणे ॥ सं० ॥ ३८ ॥ इंडिय जनित विषयरस सेवत, वर्त्तमान सुख ठाणे ॥ पण किंपाक त फलनी परे, नविविपाक तस जाणे ॥ सं० ॥ ३९ ॥ फल किपाकथकी एकज जब, प्राण हरण दुःख पावे || इंडिय ज नित विषयरसतेतो, चिंहुंगतिमें जरमावे || सं० ॥ ४० ॥ एह जाणिविषयमुखसेंति, विमुखरूप नित रहीयें, त्रिकरयो में शु 45 जानवर, जेद यथारथ लहीयें ॥ सं० ॥ ४१ ॥ पुण्य पाप दोष सम करी जाणो, द म जाणो कोट || जिम बेमी कंचन लोहानी, बंधनरूपी दोन ॥ सं० ॥ ४५ ॥ नल बल जल जिम देखो संतो. टंचा चढत व्याकाश || पाठा दलि भूमि पफे तिम, जाणो पुए प्रकाश ॥ सं० ॥ ४३ ॥ जिम साहासी लोहनी रें, कृण पाणी आग || पाप पुण्यनो इविष निश्चें, फन जालो गहाजाग || सं० ॥ कंप रोग में वर्त्तमान दुःख, अकरमांहि आगामी || इविध दोन दुःखना कारण, जां रजामी || सं० ॥ ४५ ॥ कोल कूपमें पनि सुत्रे जिम, कोठ गिरि ऊंपा खाय ॥ मरण वे सरिखा जागिये पण, जेद दोन क
४४ ॥
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सूत्र
अर्थः
शा
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