Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 325
________________ मति साधु |! पंचशतशिष्य खंधकतणा, घाणी पीच्या सोय॥ शिवनयरी शिवपामिया, ए समता फल जाय॥१२शा चिलायति पुत्र नारि शिर, !! बेदीने कर लीध ॥ नपशमतंवर विवेकयी, कृतकर्म दरेंकीध ॥१३॥ दिन प्रति सात हसाकरी, अर्जुनमाली नाम ॥ परिसह दे। खि कमाधरी, पाम्या शिवपुर ठगम ॥१२॥ मुनिपति मुनि कानसगरहे, अगनीदाधीदेह ॥ परिसहसहि पदवी वरी, अमर वधू धरि नेह ॥१२॥ वंश नपर नाटक करी, एलापुत्र कुमार ॥ जातिसमरण ऊपर्नु, ज्ञान अनंत अपार ॥१६॥ कर्मवशें आषाढ३१७॥ मुनि, जरतनुं नाटक कीध ॥ अनित नावनानावतां, तिणेतिहां केवललीध ॥१२॥ मुशिष्यपंयकजीमुनि, गुरुषमाद कियो दूर ॥ शत्रुजय अणसण करी, ते वदं गुण सूर ॥१२७ ॥ चंरौ गुरु खंवें करी, रजनी कियो विहार ॥ शिष पण केवल पामियो, तिम गुरु केवल धार ॥१२॥ षटमासीने पारणे, ढेवण नाम कुमार ॥ मोदकचूरत पामियो, केवलझान नदार ॥१३० ॥ पटखक राज हेलांतजी, लीधो संजमनार ॥ पटदशरोग इहां सह्या, श्रीश्रोसनतकुमार ॥१३२॥ कुरजखां केवलला, करगमणगार ॥ दमाख हायधरी, जे मुनिमांसिणगार ॥१३॥ पंची प्राणजराखवा, करि खंमोखा देह ॥ मेघरथ रायताणे नवें, प्रसन्नहुन सुर तेह ॥१३३॥ वंदो वीरगुमानगुं, दशान नरसिंह ॥ सुरपति पाय लगामियो, जग राखी निणलीह ।। १३४॥ प्रसन्नचं का नसग्गमा, कोपी यु६ करंन । कोपशम्यो केवल लघु, मोहटो ए गुणवंत ॥१३॥ अश्मंतो मुकुमाल मुनि, वखाए यो वीरजिणंदरियावही पमिक्कमनां, केवललघु आणंद ॥१३६॥ विरजिनवचनें थिर रह्यो, श्रेणिकमुत मेघकुमार ।। जातिसमरण पामियो, करी दो नयणां सार ॥ १३७ ॥ हाट वेचाणी चंदना, सुनश चढ्युं कलंक ।। दमयंती नल विजोग लह्यो, एह कर्मनो वंक ॥ १३० ॥ कलावती कर बेदिया, ौपदी काढ्यां चीर । अनि शितल सीता कर्यो, शील गुणें थयु नीर ॥ १३॥ ॥ चंदना चरण मृगावती, खमात्री निज अपराध ॥ केवल लहि गुरुणी दियो, दोजीव टख्यो विषवाद ॥ १८ ॥ चंद कलंक सायर कयो, खारो नीर किरतार ॥ नवतो नवाणुं नदी तणो, देखो ए जरतार ॥ १४ ॥ हरिचंदराय करम वशे, शिर वयुं हुंब घर नीर ॥ कर्म वशे नर सवि नम्या, जे जग बावन वीर ॥ ४२ ॥ गन ब्राह्मण स्त्री बालका. दृढमहारें हसा कोध ॥ चार पो "329॥ ल काउलग रही, पम्मास केवल तीध ॥ १४३ ॥ मेरु ढले ने ध्रुव चले, सायर लोपे लीह ॥ कीयां कर्म न छुटियें, जो नगे प. जिनदह ॥ १४ ॥ कोधां कर्म तो छुटिये, जो कीजें जिनधर्म ॥ मन वच कायायें करी, ए जिन शासन मर्म ॥ १४५ ॥ कर्म प्रकाशी आपणां, मन शुध आणंद पूर ॥ सह गुरु पास अ वली. जाय पाप सवि दर ॥१४६॥ बलवंत अनंता जे नरा, Jain Edu m ernational For Personal & Private Use Only wwwjaayog

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