Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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साधु
प्रति
॥३०३॥
रूप, तेहिज नर केम याये कुरूप ॥२०॥ किशें कमें वेदना अनंत, वेदन विण केम थाये जन ॥ मी तन पंचेंघिय ताणं, के. म पामे एकेंशियपणुं ॥१॥ शीपरें थाये यिर संसार, केम पामे वहेलो जवपार ॥ शे संसार सोहेलो तरी, पुण्यवंत पामे || शिवपुरी ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ ॥ जीव सवे जगती तणा, तु तस बंधु समान ॥ जाव मनोगत सव लहे, होय अनंतुं ज्ञान ।। २३॥ पुहवी पदारय जे अडे, ते देख मुनि देव ॥ कृपा करी लगवन् कहो, कर्म फलाफल देव ॥ २४॥ गुण गिरुन गणधर जलो, ह जोमी हाथ ॥ सफल करो मुज विनति, जतिय जणी जगनाथ ॥ २५ ॥ गोयम गणहर वीनव्यो, एणी परें वीरजिणंद ॥ नमे निरंतर पय कमल, जेहना चोशठ इंद ॥ २६ ॥ वीतराग बलतुं वदे, वाणी सरस अपार ॥ मुण गोयम गणधार तु. पूज्य तणो विचा र ॥१०॥
॥ चोपाई॥ ॥ गोयमपृष्ठा पूनी रहे, वलतुं वीर जिनेसर कहे ॥ सावधान सवि परपद इ, निमुणे निज नापा जूजूद ॥ २८ ॥ वरसे स्वामि वचन विलास, पोहोचे जवियण जन मन आश ॥ आषाढो सासाढो मेह, करी गाजीने आव्यो एह ॥३॥ तेणे अवसर नाठी तृष भूख, नाठां दुरिय सरीखां दुःख ॥ मधुरी वाणी सुणी जब कान, मधुरपणुं नहि कहेने मान ॥ ३० ॥ सरस कवण कहीयें मुखमी, जेणे खाधे नांगे भूनमी ॥ जिनवर वाणी निसुणी जाम, ते विपरीत वखाणे ताम ॥ ३१ ॥ जे शेलकी सरस रस घमी, ते पण कहेने चित्तें नविचमी ॥ जाति अने नजाति देखवे, गोल खांस खारी लेखवे ॥३॥ सुधा मुधा सवि कहे मन थाय, साकर कांकर सम तोलाय ॥ नीली शख न गमे सराख, एकज मीठी जिननी जाख ॥ ३३ ॥ इसी वाणी जिन मुखें नच्चरी, गोयम बोलाव्यो हित करी ॥ एकज जीव लहे दुःख घणां, सुण गोयम कारण तेहतणां ॥ ३४ ॥ जीव विणासे जपे अली, जे नर परधन चोरे वली । परनारीशुं रंगें रमे, पाप परिग्रह काको गमे ॥ ३५ ॥ रात्रि दिवस रीसें धमहमे, अनिमाने मानवनें नमे ॥ कोश तणो आणे आकार, नीचा नमणा नहि लगार ॥ ३६॥ मुख मीठो मन माया करे, ||
| ॥३०॥ कहो ते किम जवसागर तरे ॥ हियो निनुरो वयण कठोर, पापी पाप करे अति घोर ॥३७॥ जोवे लिए कुमतिनो धणी, मनमा मूळ धरे अति घणी ॥ जे अधमाधम विण अपराध, गोवें वेठो निदे साध ॥ ३० ॥ जे मानवनें एहवो दाल, प्रायें दी
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