Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 283
________________ अर्थः साधु (हे निर्मलकेवलकिरणनिकरविधुरिततमः प्रकर! ) अने दसिय के (दर्शित ) एटले देखाड्यो . सयज के0 (सकल ) एटः । प्रति ॥ ले समस्त एवो. पंयसब के० (पदार्थसार्थ) एटले पदार्थनो समूह ते जेणे तेना संबोवनने विष. हे दसियमयलपयसन (हे दर्शितसकलपदार्थसार्थ! ) अने हे विवरियपहारय के० (हे विस्तृतमलालर! ) एटले विस्तार पाम्यो कांतिनो समूह ते जे॥२७॥ || नो तेना संबोधनने विषे, (हे विस्तृतप्रजाजर!) अने कलिकलुसिय के० ( कलिकलुषित ) एटले कलिकाले करीने मलिन य येला. एटले पापयुक्त थयेला. एवा जे, जणघूयलोय के० (जनघुकलोक ) एटले जन एज घूम तेनो. लोक कहेतां समूह तेना, लोयणहअगोयर के० (लोचनागोचर ) एटले लोचन कहेता नेत्र तेने अगोचर नेना संबोधनने विषे, हे कलिकलुसियजणघूयलोयलोयणहअगोयर (हे कलिकलुषितजनघूकलोचनागोचर!) भुवणत्तयदिणयर के (हे जुवनत्रयदिनकर!) एटले त्रण जगतने प्रकाश करवामां मूर्य समान एवा. पासनाह के (हे पार्श्वनाथ! ) निरु के ( निश्चयेन ) एटले निश्चे, तिमिर के० (तिमिराणि ) अज्ञान अंधकारने. हर के० हरो. एटले नाश करो. ॥ १३ ॥ ॥ तुह समरण जल वरिस सित्त माणव मइ मेणि । __ अवरावर सुदुम बोह कंदल दल रेहणि ॥ जायर फल जर नरिय, हरिय उद दाह अणोवम । श्य मर मेणि वारि वाह दिस पास मई मम ॥ १५ ॥ अर्थः-हे जगवन्! तुह के0 ( तव ) एटले तमारा, समरणजलवरिससित्त के0 ( स्मरणजलवर्षसिक्त) एटले स्मरणरूप जे जलनो बरसात, तेणे करीने सिंचन यएली एवी, माणवमश्मेइणि के0 (मानवमतिमेदिनी) एटले मनुष्यनी बुद्धिरूप पृथ्वी जेते, अवरावरसुहमलबोह के ( अपरापरसूक्ष्मार्थबोध) एटले नवा नवा जे सूक्ष्म अर्थना बोध अर्यात् जीवाजीवादि पदार्थ, झान ते रूप, कंदलदसरहणि के० ( कन्दलदलराजिनी ) नवा अंकुरा तथा पानां तेणे करीने शोजती एवी. तथा, फलनरजरिय के (फलजरजरिता ) फल कहेता छाननुं फल जे देशविरति तथा सर्व विरति श्यादि गुणना स्थान, तेरूप नारे क ॥३ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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