Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 243
________________ साधु सूत्र प्रति० अर्थ: ॥२३॥ .. . ... र्थात् कोर पण प्रकारनां व्याकरण संबंधि छानने ग्रहण करतांयकां मने जे कोई अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने हूँ पमिकमुंछं. एटले हे श्री क्षमाश्रमण आचार्यजी महाराज! अज्यास करावती वलाए मने अज्यास करावतांयका आपला हेवे तो असंत प्रीतिपूर्वक शास्त्रोमा आवता व्याकरण संबंधि सघला प्रकारना प्रयोगो मने शोखावेला तया समजावेला होय, परंतु में मारां अंतःकरणमा अहंकारपाठानो जाव लावीने ते व्याकरण संबंधि सघला प्रकारना प्रयोगाने अविनयपणाव करीने ग्रहण करेला होय, अने तेम करवायके करीने मने जे कोई अपराध लागेलो होय. ते अपराधना सघना अतिचारोन हुँ पमिक्कमुं छु, ॥तुनहिं चिअनेणं दिलं, मए अविणएणं पमिहि, तस्स मिछामि कम ।। ३ ।। अर्थः- (तुमेहिं के० ) युष्मानिः, एटले हे जगवन् ! श्री आचार्यजी महाराज! अज्यास करावती वेलाये मने विविध प्रकारनां शास्त्रोनो नपरमुजब अत्यास करावतांयकां, एटले श्रुतझान संबंधि विविध प्रकारनो बोध आपतांयकां आपसाहेवे तो (चिअत्तेणं के०) प्रीसा, एटले प्रीतिबके करीने, अर्थात् हे श्री आचार्यजी महाराज ! आ तो मारापर घणा प्रकारनो प्रीतिनाव बतावीने असंत स्नेहपूर्वक (दिहं के०) दत्तं, एटले आपलं वे, अर्थात् शास्त्र संबंधि जूढा यनिहपाना विविध प्रकारना नांगाग्वालु झान, उत्सर्ग तथा अपवादमार्ग सहित शीखावेलु तया प्रतिबोधेनु बे, परंतु (मए के ) मया, एटले में, अर्थात् हुँ तेणे, ( अविणएणं के ) अविनयेन, एटले अविनयबमे करीने, अर्थात् कोइ पण प्रकारनो विनय राख्याविना, एटले हुं घणो विक्षन छ, में घणां शास्त्रोनो अभ्यास करेलो डे, में मारी दृष्टि नीचेयी घणां शास्त्रो कहाड्यांबे, तेमज हुं बहुश्रुत छु, मारा समान शास्त्र संबंधि अनेक प्रकारना रहस्यने जाणनारो आ जगतमां बीजो कोइ नथी, हुँ गोतार्थ छु, श्यादिक रूप अंतःकरणनी अंदर अहंकारपणानो नाव लावीने विनयनो साग करीने (पमिनिअं के ) प्र. तोपिरतं, एटले में ग्रहण करेलुं होय, अर्यात् विनयने बोकीने जो ते सघळु में ग्रहण करेलुं होय, ( तस्स के0 ) तस्य, एटले तेनो, अर्थात् ते संबंधि, एटले जेनुं पर वर्णन करवामां आव्यु ले, तेवा प्रकारना कोई पण अपराध संबंधि मने जे कोइ प्रकारनो अतिचार लागेलो होय, ते संबंधि मारूं (मिडामि हक्क के0) मिय्या मे दुष्कृतं, एटले मारुं दुष्कृत मिथ्या थान. अर्थात् में जे कंई सकार्य कयु होय, अने ते संबंधि अपराध यवायी जे को अतिचार मने लागेलो दोय, ते सघलानी हुं | ॥१३॥ Jain Educato International For Personal & Private Use Only www.jainekrary.org

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