Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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साधु
प्रति
॥श्६६॥
राक्षस, तथा जरक के० यद, तथा फर्णिद के० (फणी) एटले नागें" आठ प्रकारनां नागकुल ग्रहण करवां." अथवा || मूत्र' ( सुरावर-) सुर के महोटा देवता तेमनी अपेक्षाए, अवर के ना, एटले अस्प शक्तिवाला एवा. राइस, यद, फणी,
अर्थः ते सर्वनो, विंद के० (वृंद ) एटले समूह तथा चौर के0 चोरीना करनार तथा अनल के अग्नि, तथा जलहर के ( जलधरान् ) एटले मेघ जे तेमने, वली जलयरचारि के० (जलस्थलचारि ) जलचारी अने स्यलचारी, जलचारी एटले मगर प्रमुख हिंसक जलजंतु तथा स्यलचारी एटले सिंह, व्याघ्र प्रमुख हिंसक जीवो.
वली रनद्द के० (रौ ) एटले दर्शनमात्रयीज जय नपजावनार एवा. अने खुद के (कु) एटले निरपराध हिंसा करनार एवा जे, पसु के० (पशु) एटले तिर्यंच तथा जोणि के० ( योगिनी) एटले पोताना जक्तनो अनुग्रह करवाने अर्थे अने अनक्तनो निग्रह करवाने अर्थे मंत्रतंत्रना योगवमे करीने सिह ययेली खीन ते योगिनी कहेवाय. तथा जोश्य के० ( योगिनः ) एटले तेज प्रकारना सिह ययेला एवा योगि पुरुष जे तेमने, यंने के0 ( स्तनानि ) एटले ते सर्वनी शक्तिनुं स्तंनन करे ले. एटले तमारी आझामा चालनार पुरुषना नपर पूर्वे कहेला देवादिकनुं पण मामर्थ्य चालतुं नथी तो तमारा उपर तो कोर्नु सामर्थ्य चाले.!!! श्य के0 (इतिहेतोः) ए हेतु माटे हे तिहुअणअविलंघियाण के0 (हे त्रिजुवनाविलसिताइ) एटले त्रण जगत्मा रहेनार देवादिकोए नयी नखंघन करी आझा ते जेमनी एवा. य के0 (च) एटले वली, हे सुमामि के (हे मुस्वामिन् ) एटले हे श्रेष्ठ स्वामिन एवा, हे पास के0 (हे पार्थ!) एटले हे श्री पार्श्वनाथ प्रनो! तमो (जय के) जयवंता वत्तों. ॥६॥
॥ पछिय-अच अल-तत्र ननि-नर-निन्नर ।
रोमंचंचिय-चारु-काय किन्नर-नर-तुर-घर ॥ जसु सेवदि कम-कमल-जुयल परकालिय-कलिमलु
॥२६६। सो नुवणतय-सामि, पास मह महन रिन-बलु ॥ ७॥ पबियअन्च के0 (प्रार्थितार्थः) प्रार्थना का अर्थ एटले अनेक प्रकारनां पदार्थ ते जेमणे एवा. अथवा प्रार्थना कयु
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