Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 240
________________ सूत्र अर्थः प्रतिक प्रमुख परिग्रहने वाचनयपणे ग्रहण करेला होय, अने तेम करवायी मने जे कोइ अपराध लागेलो होय, ते अपराध संबंधि माझं दुष्कृत मिथ्या धान? बलो मारु शंदुष्कृत मिथ्या थान? तोके, (वा के० ) वा, एदले अथवा (कंबलं के० ) केवलं, एटले कंबलने, अर्थात् कामल या कामलीने ग्रहण करतांयकां मने जे को अपराध लागेलो होय, ते संबंधि मारुं दुष्कृत मिथ्या थान? एटले हे श्रीआचार्यजी महाराज आपसाहेवेतो ते कामल या कामली मने प्रीतिथी आपेली होय, परंतुं मेंमारा मनमां पंमितपणानुं अनिमान लावीने तेने अविनय पूर्वक ग्रहण करेलुं होय, अने तेम करवायी मने जे कोइ अपराध लागेलो होय, ते अपराध संबंधि मारुं दुप्कृत मिथ्या था? बलो मारुं शुं दुष्कृत मिय्या था ? तो के, (वा के७) अथवा (पाय पुचणं वा रयहरणं के0 ) पादपोंबनं, एटले पादपोंबनने, तया रयहरणं एटले रजोहरणने अर्थात् पायपुंठणने ग्रहण करतांयकां, अने रजोदरणने पण ग्रहण करतांथकां मने जे को अपराध लागेलो होय, ते संबंधि मार दुष्कृत मिथ्या था ? एटले हे श्री आचार्यजी महाराज! आपसाहेवे तो ते पायपुरण तथा रजोहरणा मने प्रीतियी आपलु होय, परंतु में मारा दिलमां पंमितपणानुं अनिमान लावीने ते पायपुंबणने तया रजोहरणने अविनय पूर्वक ग्रहण करेलुं होय, अने तेम करवायी मने जे कोई अपराध लागेलो होय ते अपराध संबंधि मारुं दुष्कृत मिथ्या था ? वली मारु शुं दुष्कृत मिथ्या थान? तो के, ( वा के०) वा, एटले अथवा (अरकर के0) अदरं, एटले अदरने, अर्यात् श्रुत संबंधि कोइ पण अकरने ग्रहण करतांयकां मने जे कोई अपराध लोगेलो होय, ते संत्रघि माझं दुष्कृत मिथ्या था? पटले द श्री आचार्यजी महाराज! आपसाहेये तो मेने अत्यास करावांयका श्रुत संबंधि अकर प्रीतिथी आपेलो होय, परंतु में मारा अंतःकरणमां पंमितपणानुं अनिमान लावीने ते श्रुत संबंधि अकरने का विनय पू.। र्वक ग्रहण करेलो होय, अने तेम करवायी मने ज कोई अपराध लागलो होय, ते अपराध संबंधि मारुं दुष्कृत मिय्या यान? वली मारूं शुं दुष्कृत मिथ्या थान? तो के, (वा के0 ) वा, एटले अथवा (पयं के0 ) पदं, एटले पदने, अर्थात् श्रुत संबंधि कोई पण प्रकारनां पदने ग्रहण करतांयकां जे कोइ अपराध मने लागलो दोय. ते अपराध संबंधि मारुं दुष्कृत मिथ्या थान? | एटले हे श्री आचार्यजी महाराज ? आपसाहे तो मने अन्यास करावती समये श्रुत संबंधि कोई पण प्रकार- पद प्रीतिथी श्रापेलुं होय, परंतु में मारा मनमा अहंकार लावीने, अयवा पंमितपणाना गर्वने धारण करीने, ते श्रुत संबंधि पदने अवि ॥३॥ dain Educa For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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