Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 5
________________ !!!| . ३0 . रत्नमाला के युग में विचारणीय है। उसके बाद ग्यारह प्रतिमाओं के पालन करने की प्रेरणा देते हुए ग्रंथकार ने अभक्ष्य वस्तु के त्याग की चर्चा की है। उसके अनन्तर वर्तमान में मुनि को वन में रहने का स्पष्ट निषेध कर के श्रावकों को दान धर्म के पालन की प्रेरणा दी है। फिर चैत्यालय निर्माण की प्रेरणा, मन्दिर में देय वस्तुओं का निर्देश, विद्वानों के आदर | का आदेश दिया गया है। । गृहीत व्रतों को पालन करने की प्रेरणा देते हुए ग्रंथकार ने पाँच व्रतों के परिपालन करने का फल बताया है। तत्पश्चात् मकारों व व्यसनों का त्याग करने के विषय में उपदेश दिया है। रात्रि भोजन त्याग व सतत णमोकार मन्त्र का स्मरण करने के फल का वर्णन ग्रंथकार ने कुशलतापूर्वक किया है। _इस ग्रंथ की विशेषता नैमित्तिक क्रियाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन तथा गृहस्थाचार्य का लक्षण है। मिथ्यामत को न मानने का उपदेश, प्रायश्चित ग्रहण करने का आदेश, द्रतरक्षा की | प्रेरणा व अन्य आगमोक्त क्रियाओं का परिपालन करने का उपदेश ग्रंथकार ने दिया है। जैनविधि बताते हुए ग्रंथकार स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सर्वमेव विधिजैनः प्रमाण्ड लौकिका सताम् यत्र न व्रत हानिः स्यात् सम्यक्त्वस्य च खण्डनम् ||६६|| अर्थः- सज्जन जिसे प्रमाणभूत मानते हैं. ऐसी सर्वलौकिक विधि जैन विधि है। वह | विधि सम्यक्त्व का खण्डन व व्रतहानि को नहीं करती है। भन्त में ग्रंथकार ने अपना व ग्रंथ का नाम प्रकट किया है। इस तरह कुल ६७ श्लोकों में ग्रंथ का विषय समाहित हुआ है। रत्नमाला तथा अन्यग्रथ एक बात अत्यन्त विचारणीय है कि अन्य ग्रंधों से साम्य प्रकट करनेवाले दो श्लोक | 'इस ग्रंथ में पाये जाते हैं। क्यों? इसका कारण या तो सर्वज्ञ जानते हैं या स्वयं ग्रंथकार।। वे श्लोक निम्न प्रकार है - १. अणुव्रतानि पश्यैव निप्रकारं गुणवतम् । शिक्षाव्रतानि चत्वारीत्येवं द्वादशधा व्रतम् ।।१४ अर्थ : - पंचाणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाप्रत ये १२ व्रत हैं। आ, सोमसेन ने लिखा है कि - - - - - - - - - - - सुविधि शाटा पत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

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