Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 3
________________ 17 1. cirn २० B रस्णमाला : सम्पादकीय : - वर्तमान युग में असंयम का बहुत विस्तार हो चुका है। पाँचों इन्द्रियों व मन उन्मुक्त होकर विषयों की ओर दौड़ रही हैं। प्राणिवध तो एक साहजिक क्रिया सी हो गयी। मनुष्य के मन की करुणा न जाने कहाँ पलायन कर गयी? वह हिंसा करने में, हिचकिचाता नहीं है। ******** ऐसे कु-समय में चरणानुयोग पद्धति का प्रचार और प्रसार ही मानव की मानवता का जिर्णोध्दार कर सकता है। विषय-वासनाओं में प्रस्त हुए गृहस्थ के मन को परमात्म तत्त्व की ओर मुड़ाने का कार्य चरणानुयोग ही कर सकता है। अतः चरणानुयोग का प्रचार आज के युग की प्रथम आवश्यकता है। चरणानुयोग का लक्षण बताते हुए स्वामी समन्तभद्र लिखते हैं कि - गृहमेध्यनगाराणां चारित्रोत्पत्ति वृध्दि रक्षाङ्गम् । चरणानुयोग समयं सम्यग्ज्ञानं विजानाति ।। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार ४५ अर्थ :- गृहस्थ और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति वृद्धि और रक्षा के कारण भूत शास्त्र को सम्यग्ज्ञान चरणानुयोग कहता है। चारित्र पालक की अपेक्षा चरणानुयोग के दो भेद हैं। गृहस्थ के चारित्र को वर्णन करनेवाला तथा मुनि के चारित्र का वर्णन करनेवाला | "रत्नमाला” श्रावकों के आचरण विशेष को प्रकट करनेवाला ग्रंथ है। इस ग्रंथ में जल गालन विधि, अष्ट मूलगुण, १२ व्रत, ११ प्रतिमा, नित्य नैमित्तिक क्रियाएं आदि अनेक विषयों का वर्णन किया गया है। अतः यह ग्रंथ गागर में सागर इस उक्ति को पूर्णतया चरितार्थ कर रहा है। r इतना सुन्दर ग्रंथ, परन्तु इसे प्रचार बिलकुल ही नहीं मिला। यह भी कोई ग्रंथ हैं ? इससे हमारी सामान्य जनता बिलकुल ही अनभिज्ञ है। यही भाव प. पू. गुरुदेव के मन में रहा। उन्होंने स्वाध्याय के समय संघ में कहा कि "चरणानुयोग को संक्षिप्त पद्धति से समझानेवाला यह मूल्यवान् ग्रंथ समाज में प्रचार विहीन रह जाये, यह दुःख का विषय है।" मुनिश्री ने इसकी टीका लिखनी प्रारंभ की। उनके समक्ष दो लक्ष्य थे। १. ग्रंथ का वर्ण्यविषय सर्वग्राह्य हो । तथा २. एक ग्रंथ का स्वाध्याय करता हुआ पाठक अन्य ग्रंथों की जानकारी प्राप्त कर सके। इन दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति इस टीका द्वारा पूर्ण हुई है । अत्यन्त सरल शैली में अनेक ग्रंथों के प्रमाण प्रस्तुत करते हुए मुनि श्री ने यह टीका लिखी है। उनका यह अथक प्रयास स्पृहणीय है। यह ग्रंथ भव्य जीवों का सतत मार्गदर्शन करता रहे यही मंगल कामना । आर्यिकाद्वय सुविधि सुयोगमती सुविधि बाठा चक्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

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