Book Title: Ratnagyan
Author(s): Yogiraj Mulchand Khatri
Publisher: Shiv Ratna Kendra Haridwar

Previous | Next

Page 4
________________ 10532) जगद्गुरु शङ्कराचार्य श्री स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी काँची कामकोटिपीठ हरिद्वार आने वाले 'शिव रत्न संस्थान' को भी अपनी चरण राज से पवित्र किया। रुद्राक्ष, विभिन्न प्रकार की मालाओं तथा रत्न, शङ्ख और नर्वदेश्वर आदि से भरा पूरा शोरूम देखकर प्रसन्न हुए। अत्यधिक प्रसन्नता तो उन्हें तब हुई जब देखा भगवान शिव की संस्थान में प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा होती है। तब। गद्-गद् वाणी से बोले-शिव भक्त रुद्राक्ष तो भगवान् रुद्र का ही स्वरूप है। महादेव होने के कारण स्वयं तो त्यागी हैं, परन्तु रत्नों को देवताओं में बांट दिया। रत्नों में देवी शक्ति है। इनके द्वारा मनुष्यों की सेवा करो, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 90