________________
(१०)
मक तथा मापांतर.
नो उत्कृष्टयी सात पर उत्पन थाय. अने जो आठमीवार पण तमांज उत्पन्न थाय, तो अवश्य असंख्याता वर्षना आयुष्यवाळा तिर्यचने विषे उत्पन थाय है, ते असंख्याता वर्षना आयुष्यवाळाने विषे उत्कृष्ट आयुष्य त्रण पल्योपमर्नु छ, तेथी करीने उपर कहेलु कायस्थितिनुं प्रमाण योग्य ज छे. एज प्रमाणे मनुष्यने विषे पण जाणवू तथा स्त्रीवेदने विषे उत्कृष्टथी एकसो दश पल्योपम अने बेथी नव करोड (सुधी) पूर्वनी कायस्थिति छे. ते आ प्रमाणे-कोइ जंतु करोड पूना आयुष्यवाळा स्त्रीपणाने विष उपरा उपर पांच के छ भव करीने इशान देवलोकमां पंचावन पल्पोपमनी उत्कृष्ट आयुष्यवाळी (स्थितिवाळी) अपरिगृहीता देवीमां उत्पन याय, पछी त्यांची चवीने फरीयी करोड पूर्व वर्षना आयुष्यवाही मनुष्यनी स्त्रीने विषे अथवा विर्यचनी स्त्रीने विषे स्वीपणे उत्पन थाय. त्यांथी फरीने पण इशान देवलोकमां प्रवमनी जेम ५५ पल्योपमने आउखे उत्पन्न याय, ते त्यांची चवीने पछी अवश्य बीजा वेदमा जाय छे. तेथी पूर्वे कहेल प्रमाण बराबर छे. १० इत्थिनपुंसे समओ, जहन्नु अंतोमुहत्त सेसेसु। अपजेसुक्कोसंपि य, पजसुहुमे थूलणतेऽवि ॥११॥ ___मृलार्थ-वीवेद तथा नपुंसकवेदने विषे जघन्य कायस्थिति एक समयनी छे. ते सिवायना बीजाने विषे जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहर्तनी छे. अपर्याप्तने विषे उत्कर्षयी पण कायस्थिति अन्तमुहर्तनी छे तथा पर्याप्त सूक्ष्मने विषे अने बादर निगोदने विषे पण तेज प्रमाणे अन्ठमुहृतनी कायस्थिति जाणवी.
टीकार्य-पूर्वोतने वि जघन्य कायस्थिति कहे जे-स्त्रीवेद अबे नपुंसकवेदने विषे अन्य कायस्थिति एक समपनो के. जेमके