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(८). भूती भाषांतर. संख्याता : हजार वर्षों ज थाय ए घटे छे. अहीं जे पर्याप्त कसो छ, ते लम्धिनी अपेक्षाए जाणवो, पण करणनी अपेक्षाए न जाणवो, केमके लन्धि पर्याप्तनो विग्रहगतिमां पण संभव के माटे. ७. बायरपजग्गिबितिचाउरिदिसु संखदिणवासदिणमासा। संखिज्जावासअहिआ, तसेसु दो सागरसहस्सा ॥८॥
मूलार्थ-बादर पर्याप्त अनिकाय तथा पर्याप्त द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अने चतुरिन्द्रियनी कायस्थिति अनुक्रमे संख्याता दिवस, संख्याता वर्ष, संख्याता दिवस अने संख्याता मासनी जाणवी. तथा त्रसकायनी स्थिति उत्कृष्टथी संख्याता वर्षे अधिक एवा वे हजार सागरोपमनी जाणवी. ८. ____टोकार्थ-चादर पर्याप्त अग्निकायनी क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय, जीन्द्रिय अने चतुरिन्द्रियनी कायस्थिति अनुक्रमे संख्याता दिवस, वर्ष, दिवस अने मास सुधोनी जाणवी. अर्थात् बादर पर्याप्त अग्निकायनी उत्कृष्ट भवस्थिति त्रण रात्रि दिवसनी छे, तेथी करीने उत्कृष्टादि स्थितिवाळा केटलाक पर्याप्त भव करवानो संभव होवायी संख्याता रात्री दिवसोज थाय छे. दोन्द्रियनी बार वर्ष, त्रीन्द्रिय नी ओगणपचास दिवस अने चतुरिन्द्रियनी छ मासनी उत्कृष्टी भवस्थिति छे. तेथी करीने निरंतर पर्याप्त भवना काळनी गणना करवायी पण कह्या प्रमाणे संख्याता ज वर्षादिक आवे छे तथा उसने विषे एटले त्रस कायमा उत्कृष्टयी कायस्थिति संख्याता वर्षे अधिक बेहजार सागरोपमनी छे. ८. अयरसहस्सं अहिय, पणिदिसु तितीसअयर सुरनरए । संनिभु तह पुरिसेसुं, अयरसयपहुत्तमम्भहियं ॥९॥
मूलार्थ-पंचेन्द्रियने विषे संख्याता वर्षे अधिक एवा एक