Book Title: Purn Vivaran
Author(s): Jain Tattva Prakashini Sabha
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 7
________________ ! ( ५ ) * श्रोइम् * व्याख्यान ॥ सर्व साधारणको सूचित किया जाता है कि श्रीमान् स्वामी दर्शनानन्द जी महाराजने कृपापूर्वक यहां ठहर कर नीचे लिखे अनुसार व्याख्यान देना स्वीकार किया है, अतः आप अपने इष्टमित्रों सहित अवश्य पधारकर लाभ उठावें तारीख २१-६- १२ वृहस्पतिवार सायंकाल के ८ बजे, विषय - " जैनियोंकी मुक्ति" स्थान - श्रार्यसमाज भवन, जयदेव शर्मा, मन्त्री - आर्यसमाज, अजमेर A सभाका वार्षिकोत्सव प्रारम्भ होनेके एकदिन पूर्व ही तारीख २१ जूनको उपर्युक्त विज्ञापन के अनुसार स्वामी दर्शनानन्द जी सरस्वतीका “जैनियोंकी मुक्ति" पर एक व्याख्यान हुआ जिसमें कि उन्होंने उसको विना समझे हुए ऊटपटांग खण्डन किया । व्याख्यान समाप्त हो जानेपर एक अल्प वयस्क जैन नवयुवकने शंशा करनेकी आज्ञा चाही जो कि दी गयी । परन्तु उस न वयुवकका विना भलीभांति समाधान किये ही उसकी शंकाओंका समाधान कार्य वन्द कर दिया गया जिसका कि बहुत बुरा प्रभाव सर्वसाधारणपर पड़ा। शुक्रवार २८ जून १९१२ईस्वी । प्रातःकाल श्री कुंवर दिग्विजयसिंह जी, श्री जैन सिद्धान्त पाठशाला मोरेना- ( ग्वालियर ) के विद्यार्थी मक्खनलाल जी, विद्यार्थी देवकीनन्दन जी, विद्यार्थी उमरावसिंह जी, चन्द्रसेन जैन वैद्य आदि सज्जन इटावा की भजन मण्डली सहित मुम्बई जाने वाली डाकगाड़ीसे अजमेर पहुंचे । कुंवर साहव व मण्डलीका स्वागत बड़े धूम धाम से अजमेर में हुआ । स्वामी दर्शनान्द जी सरस्वती के कल २७ जून के दिये हुये “जैनियोंकी मुक्ति" वाले व्याख्यानकी यथार्थ समीक्षा कर सर्व साधारण में उसके द्वारा फैले हुये अज्ञानको दूर करना निश्चित हुआ अतः निम्न विज्ञापन समाकी ओर से प्रकाशित किया गया ।

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