________________ जैनधर्म की प्राचीनता अनेक विद्वानों के वक्तव्यों से व्यक्त होती है तथा साथ ही प्राचीन अवशेषों तथा ग्रन्थों के द्वारा भी व्यक्त होती है. क्योंकि जैन धर्म का किसी न किसी रूप में प्राचीन जैनेतर साहित्यों में उल्लेख हुआ है। _ जैनधर्म की प्रमुख विशेषताओं के अन्तर्गत हम अहिंसा, अनेकान्त, द्रव्य सम्बन्धी विशिष्ट चिन्तन एवं साधना मार्ग इत्यादि देख सकते हैं। जैनधर्म में अहिंसा का सर्वाधिक महत्व है। समस्त आचारों का केन्द्रबिन्दु अहिंसा है एवं अन्य सभी आचार इसी के परिपोषक हैं। ___ अनेकान्त भी अहिंसा से ही सम्बन्धित है। यह एक प्रकार की वैचारिक अहिंसा है। कहीं हम सत्य के एक पक्ष को ही लेकरं न बैठ जायें तथा सत्य के अन्य पक्ष का हनन न कर दें, इसके लिए अनेकान्तवाद का सिद्धान्त बताया गया है। यह विशेषतः व्यक्ति के बौद्धिक पक्ष से सम्बद्ध है। . अनेकान्त पर जैन तात्विक चिन्तन अवधारित है। द्रव्य का स्वरूप जैन दृष्टि से एकान्ततः नित्य अथवा एकान्ततः अनित्य न होकर कथंचित् नित्य एवं कथंचित् अनित्य है अर्थात् नित्यानित्य है। जैन आगमों के अनुसार द्रव्य के छ: प्रकार हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय एवं जीवास्तिकाय। __द्रव्य के समान ही साधना मार्ग भी अनेकान्तात्मक है। मोक्ष प्राप्ति के साधन रूप में जैन परम्परा में एकान्ततः ज्ञान या दर्शन अथवा चारित्र को कारण न मानते हुए तीनों के समन्वित रूप को ही श्रेयस्कर माना गया है। साधना के क्षेत्र में मुख्यतः समत्व प्राप्ति ही ध्येय है क्योंकि समत्व के अभाव में निर्वाण की प्राप्ति नहीं होती है, इसीलिए समत्व का विशेष महत्व जैनदर्शन में है। मन के ही नहीं, दृष्टि के (प्रज्ञा के) समत्व पर भी जैनदर्शन में बल दिया गया है। अपने अनेकान्तवादी उदार दृष्टिकोण से समन्वित जैनाचार्य हरिभद्रसूरि ने तो यहाँ तक कह दिया कि कोई भी व्यक्ति हो, चाहे वह श्वेताम्बर हो या दिगम्बर, बुद्ध हो या कोई अन्य हो, जिसकी भी आत्मा समभाव युक्त हो, वह निर्वाण के परम सौख्य को प्राप्त होता है। तात्पर्य यही है कि साधना के क्षेत्र में किसी भी प्रकार के पन्थ, जाति आदि के प्रतिबन्ध नहीं हैं। जैन धर्म की उपर्युक्त विशेषताओं का पुराणों से तुलनात्मक विश्लेषण करने से यह अवगत होता है कि पुराणों में भी जैनधर्म सम्मत मन्तव्यों का विवेचन उपलब्ध होता है। पुराणों में न केवल जैनसम्मत मत ही दृष्टिगत होते हैं अपितु नामशः भी जैनधर्म उल्लिखित है। विषय प्रवेश / 2