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चतुर → र→ चर से परे ( भिस्, भ्यस् और सुप् होने पर) विकल्प से ( ह्रस्व उकारान्त के स्थान पर) दीर्घ हो जाता है ।
चतुर्--चउ से परे भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय हि, हि, हिं), भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय (हि, हिन्तो, सुन्तो) और सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय 'सु') होने पर ह्रस्व उकारान्त के स्थान पर दीर्घ हो जाता है । जैसे -
(चउ+भिस्)= (चउ+ हिं, हि, हिं) = चहं, चऊहि, चऊहिं (तृतीया बहुवचन) (चउ+भ्यस्)=(चउ + हि, हिन्तो, सुन्तो) = चऊहि, चऊहिन्तो, चऊसुन्तो (पंचमी बहुवचन)
(चउ + सुप् ) = (चउ + सु ) = चऊसु (सप्तमी बहुवचन)
17. लुप्ते शसि
3/18
लुते ( लुप्त ) भूकृ 7 / 1 शसि (शस्) 7/1
( प्राकृत में ) लोप किए गए शस् के होने पर (दीर्घ हो जाता है) ।
इकारान्त, उकारान्त पुल्लिंग स्त्रीलिंग शब्दों से परे शस् (द्वितीया बहुवचन के
प्रत्यय) का लोप होने पर वे शब्द दीर्घ हो जाते हैं ।
हरि (पु.) - ( हरि + शस् ) = ( हरि + ० ) = हरी ( द्वितीया बहुवचन) मइ (स्त्री) – (मइ + शस् ) = (मइ + ० ) = मई ( द्वितीया बहुवचन) साहु (पु.) - ( साहु + शस् ) = ( साहु + ० ) साहू ( द्वितीया बहुवचन) धेणु (स्त्री.) - (धेणु + शस् ) = ( धेणु + ० ) = वेणू (द्वितीया बहुवचन)
इसी प्रकार गामरणी (पु.), सयंभू (पु.), लच्छी (स्त्री) और बहू (स्त्री) के रूप बनेंगे |
18. प्रक्लीबे सौ 3/19
क्ली ( क्लब) 7/1 सौ (सि) 7/1
( प्राकृत में ) क्लब में अर्थात् पुल्लिंग स्त्रीलिंग ( शब्दों में) सि परे होने पर (दीर्घ हो जाता है) ।
इकारान्त, उकारान्त पुल्लिंग स्त्रीलिंग शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय ) परे होने पर उनका दीर्घ हो जाता है । ( और नियमानुसार सि का लोप हो जाता है) ।
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ
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