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141. ह्रस्वः संयोगे 1/84
ह्रस्व: (ह्रस्व) 1/1 संयोगे (संयोग) 7/1 (दीर्घ स्वर के आगे संयुक्ताक्षर का) संयोग होने पर ह्रस्व (हो जाता है) । दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो उस दीर्घ स्वर का ह्रस्व हो जाया करता है।
देवात्तो-देवत्तो (पंचमी एकवचन) 142. शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् 4/448
शेष संस्कृतवत् सिद्धम् [(शेषम्)+ (संस्कृतवत्)] शेषम् (शेष) 2/1 संस्कृतवत् = संस्कृत के समान सिद्धम् (सिद्ध) 1/1 शेष (रूपों) को संस्कृत के समान सिद्ध (समझना चाहिए)। प्राकृत में बचे हुए शेष शब्दरूपों को संस्कृत के समान समझ लेना चाहिए । (कहा+सि) कहा (प्रथमा एकवचन) (कहा+सुप्)= कहासु (सप्तमी बहुवचन)
आदि 143. तो दोनादौ शौरसेन्यामयुक्तस्य 4/260
तो दोनादौ शौरसेन्यामयुक्तस्य [(त:) + (दः)+(अनादौ)] [(शौरसेन्याम्) + (अयुक्तस्य)] तः (त्) 6/1 दः (द्) 1/3 अनादौ (अनादि) 7/1 शौरसेन्याम् (शौरसेनी) 7/1 प्रयुक्तस्य (अयुक्त) 6/1 शौरसेनी में अनादि में (माने वाले) 'त्' के स्थान पर 'द्' होता हैं (और) प्रयुक्त 'त्' के स्थान पर (भी 'द्' होता है)। शौरसेनी में 'त' अक्षर के स्थान पर 'द' की प्राप्ति होती है जबकि 'त्' पद के प्रादि (प्रारम्भ) में न हो तथा 'त्' किसी अन्य हलन्त व्यञ्जनाक्षर के साथ संयुक्त न हो। तया करिहिमो जया (पद के प्रादि में 'त्' होने से 'द्' नहीं होगा)। मत्तो, अय्य उत्तो ('त्' हलन्त व्यञ्जनाक्षर के साथ संयुक्त होने से 'द्' नहीं
होगा)।
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ
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