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37. डो दीर्घोवा 3/38
डो वीर्घोवा [(दीर्घः)+(वा)] डो (डो) 1/1 दीर्घः (दीर्घ) 1/1 वा =विकल्प से (प्राकृत में) (आमन्त्रण से परे सि होने पर) डो-प्रो और वीर्घ विकल्प से (होता है)। (i) आमन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर (उसके स्थान
पर) अकारान्त पुल्लिग शब्दों में प्रो और दीर्घ विकल्प से होता है । देव (पु.)-(हे देव + सि)=(हे देव+ो)=हे देवो (सम्बोधन एकवचन) विकल्प होने के कारण मूल भी होगा (हे देव+सि)=(हे देव+0)= हे देव (सम्बोधन एकवचन) (हे देव+सि)=(हे देव+दीर्घ)=हे देवा (सम्बोधन एकवचन)
(ii) आमन्त्रण से परे सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) होने पर (उसके
स्थान पर) ह्रस्व इकारान्त-उकारान्त पुल्लिग-स्त्रीलिंग शब्दों में (3/19) दीर्घ विकल्प से होता है। हरि (पु.)-(हे हरि+सि) = (हे हरि+दीर्घ) = हे हरी
__ (सम्बोधन एकवचन) विकल्प होने के कारण मूल भी होगा। (हे हरि+मि) = (हे हरि+०) =हे हरि
(सम्बोधन एकवचन) साहु (पु.)-(हे साहु +सि) = (हे साहु + दीर्घ) = हे साहू
(सम्बोधन एकवचन) (हे साहु+सि) = (हे साहु +०) = हे साहु
(सम्बोधन एकवचन) मइ (स्त्री.)-(हे मइ+सि) = (हे मइ+दीर्घ) = हे मई
(सम्बोधन एकवचन) (हे मइ+सि) = (हे मइ+०) = हे मइ
(सम्बोधन एकवचन) घेणु (स्त्री.)- इसी प्रकार हे घेणू , हे घेणु
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम
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