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130. एत् 3/129
एत् (एत्) 1/1 एत्→ए (नहीं होता)। आकारान्त, इकारान्त, उकारान्त पुल्लिग, स्त्रीलिंग शब्दों में टा (तृतीया एकवचन के प्रत्यय), शस् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय), भिस् (तृतीया बहुवचन के प्रत्यय), भ्यस् (पंचमी बहुवचन के प्रत्यय), सुप् (सप्तमी बहुवचन के प्रत्यय) से परे सम्बन्धित विभक्ति-प्रत्यय होने पर अन्त्य स्वर आ, इ, उ के स्थान पर एत् →ए की प्राप्ति नहीं होती। (कहा-+-शस्, टा, मिस्, भ्यस्, सुप्)=अन्त्य स्वर 'प्रा' के स्थान पर ए नहीं
होगा (मइ, लच्छी+शस्, टा, भिस्, भ्यस्, सुप्)-अन्त्य स्वर इ, ई के स्थान पर ए
नहीं होगा (हरि, गामणी + शस्, टा, भिस्, ग्यस्, सुप्)= अन्त्य स्वर इ, ई के स्थान पर
ए नहीं होगा (साहु, सयंभू + शस्, टा, भिस्, भ्यस्, सुप्) =अन्त्य स्वर उ, ऊ के स्थान पर ए
नहीं होगा 131. द्विवचनस्य बहुवचनम् 3/130
द्विवचनस्य (द्विवचन) 6/1 बहुवचनम् (बहुवचनम्) 1/1 द्विवचन के स्थान पर बहुवचन (होता है)।
प्राकृत में द्विवचन नहीं होता । एकवचन व बहुवचन ही होते हैं । 132. चतुर्थ्याः षष्ठी 3/131
चतुर्थ्याः (चतुर्थी) 6/1 षष्ठी (षष्ठी) 1/1 चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी (होती है)। प्राकृत में चतुर्थी व षष्ठी के लिए एक ही तरह के प्रत्यय प्रयुक्त किए जाते हैं । नमो देवस्स=देवता के लिए नमस्कार हो । मुणीण देइ-मुनियों के लिए देता है ।
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरम्म
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