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43. ऋतामुदस्यमौसु वा 3/44
ऋतामुदस्यमौसु वा [(ऋताम्)+(उद्→उत्)+(प्र)+(सि)+ (अम्) + (प्रोस)] ऋताम् (ऋत्) 6/3 उत् (उत्) 1/1 प्र=नहीं [ (सि) - (अम्) - (प्रो) 7/3 ] वा=विकल्प से (ऋकारान्त शब्दों में) ऋत्-ऋ के स्थान पर उत्→उ विकल्प से (हो जाता है)। (किन्तु) सि, प्रम् और प्रो परे होने पर नहीं (होता है)। ऋकारान्त शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय), प्रम् (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) और प्रौ (प्रथमा-द्वितीया द्विवचन के प्रत्ययों) को छोड़कर शेष समी प्रत्ययों के योग में ऋ के स्थान पर विकल्प से उ हो जाता है। कर्तृ (पु.)-(कर्तृ + जस्, शस्, टा प्रादि)= कत्तु पितृ (पु.)-(पितृ+जस्, शस्, टा आदि)=पितु--पिउ उकारान्त पुल्लिग शब्दों की तरह कत्तु और पिउ के रूप (प्रथमा और द्वितीया एकवचन, द्विवचन को छोड़कर) चलेंगे।
44. प्रारः स्यादौ 3/45
प्रारः स्यादौ [ (सि) + (प्रादौ)] मारः (मार) 1/1 [ (सि) - (प्रादि) 7/1 ] (विशेषणात्मक ऋकारान्त शब्दों में) सि प्रादि परे होने पर (ऋ के स्थान पर) पार (होता है)। विशेषणात्मक ऋकारान्त शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय) आदि परे होने पर ऋ के स्थान पर पार होता है। कर्तृ (वि.)-(कर्तृ +सि, अम्, जस् आदि) कर्तार→कत्तार दातृ (वि.)- (दातृ+सि, अम्, जस् आदि) =दातारदापार इनके रूप प्रकारान्त पुल्लिग की तरह चलेंगे।
प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ ]
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