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45. प्रा रा मातुः 3/46
प्रा (प्रा) 1/1 प्ररा (अरा) 1/1 मातुः (मातृ) 6/1 मातृ के (ऋ के स्थान पर) (सभी प्रत्ययों के योग में) प्रा और अरा (हाते हैं) मातृ के ऋ के स्थान पर सभी प्रत्ययों के योग में प्रा और परा होते हैं। मातृ (स्त्री.)-- (मातृ+सि, जस्. अम् आदि)=मामा, मारा इनके रूप प्राकारान्त की तरह चलेंगे ।
46.
नाम्न्यरः 3/47 नाम्न्यरः [ (नाम्नि)+(अरः)] नाम्नि (नामन्) 7/1 अरः (अर) 1/1 (ऋकारान्त) संज्ञा (शब्दों) में प्रर (होता) है । ऋकारान्त संज्ञा शब्दों में सि आदि परे होने पर ऋ के स्थान पर पर होता है । पितृ (पु.)-(पितृ+सि प्रादि)=पितर→पिमर
इनके रूप प्रकारान्त पुल्लिग की तरह चलेंगे। 47. प्रा सौ न वा. 3/48
मा (आ) 1/1 सौ (सि) 7/1 न वा=विकल्प से (ऋकारान्त शब्दों में) सि परे होने पर (ऋ के स्थान पर) आ विकल्प से (होता है)। ऋकारान्त शब्दों में सि (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) परे होने पर ऋ के स्थान पर प्रा विकल्प से होता है । पितृ (पु) - (पितृ+सि)=-पितृ-पिता-+पिना (प्रथमा एकवचन) कर्तृ (वि.)- (कर्तृ+सि)=कत्ता
(प्रथमा एकवचन) सूत्र संख्या 3/45, 3/47 व 3/5 के आधार से पितृ (पु)-(पितृ +अम्) = पिनरं
(द्वितीया एकवचन) कर्तृ (वि.)-(कर्तृ+अम्)=कत्तारं
(द्वितीया एकवचन) 48. राज्ञः 3/49
राज्ञः (राजन्) 5/1 राजन्1→राम→राय से परे सि होने पर (प्र/य के स्थान पर) प्रा/या (विकल्प से) (होता है)।
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[ प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ
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